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planted, such as millet and wheat. (2) Mool-beej-those which grow when the root-bulb is planted like potatoes. (3) Parva-beej—those which 45 grow when the knot is planted like sugar-cane and bamboo, (4) skandhbeej-those which grow when the branch is planted like roses. (5) Beej. ruha-those which grow from seeds. (6) Sammurchhim-those which grow without seeds, such as wild grass. नो सुलभ-पद NO SULABH-PAD (SEGMENT OF NOT EASY)
१३. छट्ठाणाई सबजीवाणं णो सुलभाई भवंति, तं जहा-माणुस्सए भवे। आरिए खेत्ते जम्म। सुकुले पच्चायाती। केवलीपण्णत्तस्स धम्मस्स सवणता। सुतस्स वा सद्दहणता। सद्दहितस्स वा पत्तितस्स वा रोइतस्स वा सम्मं काएणं फासणता।
१३. छह स्थान सब जीवों को प्राप्त होना सुलभ नहीं हैं-(१) मनुष्य भव, (२) आर्य क्षेत्र में जन्म, (३) सुकुल (धार्मिक कुल) में उत्पन्न होना, (४) केवलिप्रज्ञप्त धर्म का सुनना, (५) सुने हुए धर्म पर श्रद्धा करना तथा (६) श्रद्धा प्रतीति और रुचि किये गये धर्म का काय से सम्यक् स्पर्शना (आचरण करना)। __13. Six things are not easily available to all beings--(1) birth as a + human being, (2) birth in Arya kshetra (the land of Aryas), (3) birth in a noble religious) family, (4) to listen to the religion propagated by a Kevali, (5) to have faith on the so listened religion, and (6) to actually follow in practice properly (to follow the path of) the religion of one's faith, with awareness and interest. इन्द्रियार्थ-पद INDRIYARTH-PAD (SEGMENT OF SUBJECTS OF SENSE ORGANS)
१४. छ इंदियत्था पण्णत्ता, तं जहा-सोइंदियत्थे, [चक्खिंदियत्थे, घाणिंदियत्थे, जिभिंदियत्थे ], फासिंदियत्थे, णोइंदियत्थे।
१४. इन्द्रियों के अर्थ (विषय) छह हैं-(१) श्रोत्रेन्द्रिय का अर्थ-शब्द, (२) चक्षुरिन्द्रिय का अर्थरूप, (३) घ्राणेन्द्रिय का अर्थ-गन्ध, (४) रसनेन्द्रिय का अर्थ-रस, (५) स्पर्शनेन्द्रिय का अर्थ-स्पर्श, (६) नोइन्द्रिय (मन) का अर्थ-श्रुत।
14. Indriyas (sense organs) have six arth (subjects)—(1) the subject of shrotrendriya (ear) is sound, (2) the subject of chakshu-indriya (eyes) is appearance, (3) the subject of ghranendriya (nose) is smell, (4) the subject of rasanendriya (taste-buds) is taste, (5) the subject of sparshanendriya (touch) is touch (6) the subject of noindriya (mind) is shrut (the religion propagated by Jinas).
विवेचन-पाँच इन्द्रियों के विषय तो नियत एवं सर्व-विदित हैं किन्तु मन का विषय नियत नहीं है। वह सभी इन्द्रियों के द्वारा गृहीत विषय का चिन्तन करता है, अतः सर्वार्थग्राही है। टीकाकार अभयदेव ॥
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षष्ठ स्थान
(225)
Sixth Sthaan
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