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8555555555555555555555555555555555555 ॐ २३८. जीवों ने पाँच स्थानों से निष्पादित पुद्गलों का पापकर्म के रूप से भूतकाल में संचय किया है 卐 है, वर्तमान में कर रहे हैं और भविष्य में करेंगे, जैसे-(१) एकेन्द्रियनिर्वर्तित पुद्गलों का,
(२) द्वीन्द्रियनिर्वर्तित पुद्गलों का, (३) त्रीन्द्रियनिर्वर्तित पुद्गलों का, (४) चतुरिन्द्रियनिर्वर्तित पुद्गलों का, (५) पंचेन्द्रियनिर्वर्तित पुद्गलों का।
इसी प्रकार पाँच स्थानों से निर्वर्तित पुद्गलों का पापकर्म रूप से उपचय-(बार-बार संचय करना), बन्ध, उदीरण, वेदन और निर्जरण किया है, वर्तमान में कर रहे हैं और भविष्य में करेंगे।
238. Jivas (souls) did, do, and will attract (chaya) particles in the form of paap-karma (demeritorious karmas) in five ways—(1) Ekendriya nirvartit (earned as one-sensed beings), (2) Dvindriya nirvartit (earned as two-sensed beings), (3) Trindriya nirvartit (earned as three-sensed beings), (4) Chaturindriya nirvartit (earned as four-sensed beings) and (5) Panchendriya nirvartit (earned as five-sensed animal beings).
In the same way jivas (souls) did, do, and will augment (upachaya), fructify (udiran), experience (vedan) and shed (nirjaran) particles in the form of paap-karma (demeritorious karmas) five ways.
पुद्गल-पद PUDGAL-PAD (SEGMENT OF MATTER) म २३९. पंचपएसिया खंधा अणंता पण्णत्ता।
२३९. पाँच प्रदेश वाले पुद्गलस्कन्ध अनन्त हैं। $1 239. There are infinite matter molecules having five space-points
(ultimate-particles). म २४०. पंचपएसोगाढा पोग्गला अणंता पण्णत्ता जाव पंचगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता।
२४०. (आकाश के) पाँच प्रदेशों में अवगाढ (अवस्थित) पुद्गलस्कन्ध अनन्त हैं। पाँच समय की फ़ स्थिति वाले पुद्गल-स्कन्ध अनन्त हैं। पाँच गुण वाले पुद्गलस्कन्ध अनन्त हैं।
इसी प्रकार शेष वर्ण तथा सभी रस, गन्ध और स्पर्श वाले पुद्गलस्कन्ध अनन्त है।
240. There are infinite matter molecules occupying five space-points in space. There are infinite matter molecules with an existence of five Samayas. There are infinite matter molecules with five units of attributes.
In the same way there are infinite matter molecules with five units of ___each attribute of appearance, smell, taste, and touch.
॥ पंचम स्थान का तृतीय उद्देशक समाप्त ॥ • END OF THE THIRD LESSON
॥पंचम स्थान समाप्त ॥ • END OF THE FIFTH STHAAN
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| स्थानांगसूत्र (२)
(214)
Sthaananga Sutra (2)
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