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मनुष्यगतिगामी होता है । (४) शिर से निर्याण करने वाला जीव देवगतिगामी होता है। (५) सर्वाङ्ग में निर्याण करने वाला जीव सिद्धगति अर्थात् मुक्ति प्राप्त करता है।
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[विशेष - जब शरीर के एक भाग से जीव निकलता है, तब महावेदना होती है, किन्तु सर्वांगों से जब आत्मा निकलता है। तब कोई वेदना नहीं होती ]
214. There are five paths of niryan (departure) of jivapradesh (soulspace-points) at the time of death – (1) legs, (2) thigh, (3) heart, (4) head and (5) whole body.
(1) A soul departing through legs (below knees) is destined for hell; 5 (2) that departing from thigh is destined for animal genus, (3) that departing from heart is destined for human genus, (4) that departing from head is destined for divine realm and (5) that departing from whole body is destined for the status of Siddha or to be liberated. (When the soul departs through any one part of body it is very painful but when it departs from the whole body it is not painful.)
छेदन - पद CHHEDAN-PAD (SEGMENT OF DIVISION)
२१५. पंचविहे छेयणे पण्णत्ते, तं जहा - उप्पाछेयणे, वियच्छेयणे, बंधच्छेयणे, पएसच्छेयणे, दोधारच्छेयणे ।
२१५. छेदन (विभाग) पाँच प्रकार का होता है - ( १ ) उत्पाद - छेदन - उत्पाद पर्याय के आधार पर विभाग करना । ( २ ) व्यय - छेदन - विनाश पर्याय के आधार पर विभाग करना । ( ३ ) बन्ध - छेदन - कर्म-बन्ध का छेदन, या पुद्गलस्कन्ध का विभाजन । (४) प्रदेश-छेदन - अविभक्त वस्तु के प्रदेशों का बुद्धि से कल्पित विभाजन । (५) द्विधा - छेदन - किसी वस्तु के दो विभाग करना ।
215. Chhedan (division) is of five kinds-(1) Utpad-chhedan-to divide on the basis of mode of production, (2) vyaya-chhedan-to divide on the basis of mode of destruction, (3) bandh-chhedan-division of ! karmic bondage or division of matter particle, (4) pradesh-chhedan-to conceptually divide an undivided thing and (5) dvidha-chhedan-to divide in two parts.
आनन्तर्य - पद ANANTARYA-PAD (SEGMENT OF NON-INTERRUPTION)
२१६. पंचविहे आणंतरिए पण्णत्ते, तं जहा - उप्पायाणंतरिए, वियाणंतरिए, पएसाणंतरिए, समयाणंतरिए, सामण्णाणंतरिए ।
२१६. आनन्तर्य (विरह का अभाव, सातत्य) पाँच प्रकार का होता है- ( १ ) उत्पाद - आनन्तर्यलगातार उत्पत्ति । ( २ ) व्यय - आनन्तर्य - लगातार विनाश । ( ३ ) प्रदेश - आनन्तर्य - लगातार प्रदेशों की
स्थानांगसूत्र (२)
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Sthaananga Sutra (2)
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