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these five celestial vehicles are situated at the highest part of the lok. (Hindi Tika, part-2, p. 200) सत्त्व-पद SATTVA-PAD (SEGMENT OF COURAGE)
१९८. पंच पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-हिरिसत्ते, हिरिमणसत्ते, चलसत्ते, थिरसत्ते, उदयणसत्ते। ॐ १९८. पुरुष पाँच प्रकार के होते हैं-(१) ह्रीसत्त्व-लज्जा के कारण हिम्मत रखने वाला।
(२) हीमनःसत्त्व-लज्जावश भी केवल मन में ही हिम्मत लाने वाला, देह में नहीं। (३) चलसत्त्व-हिम्मत
या साहस हारने वाला। (४) स्थिरसत्त्व-विकट परिस्थिति में भी मनोबल को स्थिर रखने वाला। 卐 (५) उदयनसत्त्व-उत्तरोत्तर प्रवर्धमान सत्त्व या पराक्रम वाला।
198. Men are of five kinds-(1) Hri-sattva-who is courageous out of shame, (2) hrimanah-sattva-who is courageous out of shame but only in mind and not in action, (3) chal-sattva-who loses courage, (4) sthirsattva–who remains courageous even in difficult predicament and (5) udayan-sattva-who has ever increasing courage. भिक्षाक-पद BHIKSHAAK-PAD (SEGMENT OF ALMS EATER)
१९९. पंच मच्छा पण्णत्ता, तं जहा-अणुसोतचारी, पडिसोतचारी, अंतचारी, मज्झचारी, सव्वचारी।
एवामेव पंच भिक्खागा पण्णत्ता, तं जहा-अणुसोतचारी, (पडिसोतचारी, अंतचारी, # मज्झचारी), सव्वचारी।
१९९. मत्स्य (मच्छ) पाँच प्रकार के होते हैं-(१) अनुस्रोतचारी-जल-प्रवाह के अनुकूल चलने ॐ वाला। (२) प्रतिस्रोतचारी-जल-प्रवाह के प्रतिकूल चलने वाला। (३) अन्तचारी-जल-प्रवाह के ॥
किनारे-किनारे चलने वाला। (४) मध्यचारी-जल-प्रवाह के मध्य में चलने वाला। (५) सर्वचारी-जल में 5 E सर्वत्र विचरण करने वाला। म इसी प्रकार भिक्षुक (अभिग्रह लेकर भिक्षाचरी करने वाले) भी पाँच प्रकार के होते हैं, जैसेE (१) अनुस्रोतचारी-उपाश्रय से निकलकर सीधी गृहपंक्ति से गोचरी करने वाला। (२) प्रतिस्रोतचारी-गली 卐 के अन्तिम गृह पर पहुँचकर लौटते हुए उपाश्रय तक घरों से गोचरी करने वाला। (३) अन्तचारी-ग्राम के
के अन्तिम भाग में स्थित गृहों से गोचरी लेने वाला। (४) मध्यचारी-ग्राम के मध्य भाग से गोचरी लेने * वाला। (५) सर्वचारी-ग्राम के सभी भागों से गोचरी लेने वाला। म 199. Matsya (fish) are of five kinds-(1) anusrotachari-one that
moves with the flow of water, (2) pratisrtochari-one that moves against
the flow of water, (3) antachari-one that moves at the brink, 9 (4) madhyachari-one that moves in the middle and (5) sarvachari-one
that moves everywhere in water.
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| स्थानांगसूत्र (२)
(198)
Sthaananga Sutra (2)
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