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因步步步步步步步步步牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙%%%%%%%%%%%%%% र वृत्तिकार ने ब्रह्मशौच के अन्तर्गत, सत्य शौच, तपःशौच, इन्द्रिय निग्रह शौच तथा सर्व भूत दया शौच ऊ को सम्मिलित किया है। इस प्रकार मंत्रशौच और ब्रह्मशौच को भावशौच जानना चाहिए।
Elaboration-Means of cleansing is called shauch. Sand, water and ash (produced by fire) are normally used for cleansing. These are called 9 dravya (physical) or bahya (external) shauch. Mantras are used for 4 cleansing of mind. To take the vow of celibacy is called brahma shauch.
It is said that a celibate person is always pure. The commentator (Vritti)
has also included truth, austerities, control over sense organs, and 45 compassion for all beings in brahma-shauch. Thus mantra shauch and
brahma shauch are included in inner or spiritual cleansing.
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छद्मस्थ-केवली-पद CHHADMASTH-KEVALI-PAD
___(SEGMENT OF CHHADMASTH-KEVALI) १९५. पंच ठाणाई छउमत्थे सव्वभावेणं ण जाणति ण पासति, तं जहा-धम्मत्थिकायं, अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं, जीवं असरीरपडिबद्धं, परमाणुपोग्गलं।
एयाणि चेव उप्पण्णणाणदंसणधरे अरहा जिणे केवली सब्वभावेणं जाणति पासति, तं जहाधम्मत्थिकायं, (अधम्मत्थिकायं, आगासत्थिकायं जीवं असरीरपडिबद्ध), परमाणुपोग्गलं।
१९५. छद्मस्थ मनुष्य पाँच वस्तुओं को सर्वथा न जानता है और न देखता है-(१) धर्मास्तिकाय को, (२) अधर्मास्तिकाय को, (३) आकाशास्तिकाय को, (४) शरीर-रहित जीव को और (५) पुद्गल परमाणु को इन पाँच वस्तओं को उत्पन्न ज्ञान दर्शन के धारक अर्हत. जिन और केवली. सर्वभाव से जानते और देखते हैं। ____ 195. A chhadmasth (a person in state of karmic bondage) person does not fully see or know five things—(1) Dharmastikaya (motion entity), (2) Adharmastikaya (inertia entity), (3) Akashastikaya (space entity), (4) disembodied soul and (5) ultimate particle of matter. ___Arhat, Jina, and Kevali endowed with right knowledge and . perception see and know these five things fully—(1) Dharmastikaya (motion entity), [(2) Adharmastikaya (inertia entity), (3) Akashastikaya (space entity), (4) disembodied soul and) (5) ultimate particle of matter.
विवेचन-जिनके ज्ञानावरण और दर्शनावरण कर्म विद्यमान हैं। ऐसे बारहवें गुणस्थान तक के सभी जीव छद्मस्थ कहलाते हैं। छद्मस्थ जीव अरूपी चार अस्तिकायों को समस्त पर्यायों सहित पूर्ण रूप से साक्षात् नहीं जान सकता और न देख सकता है। चलते-फिरते शरीर-युक्त जीव तो दिखाई देते हैं,
किन्तु शरीर-रहित जीव कभी नहीं दिखाई देता है। पूर्व के चार अरूपी द्रव्य हैं। पुद्गल रूपी है, पर 卐 एक परमाणु रूप पुद्गल सूक्ष्म होने से छद्मस्थ के ज्ञान का विषय नहीं बनता। .
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स्थानांगसूत्र (२)
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Sthaananga Sutra (2)
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