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म अचित्त-वायुकाय-पद ACHITTA-VAYUKAYA-PAD
(SEGMENT OF LIFELESS AIR-BODIED BEINGS) १८३. पंचविधा अचित्ता वाउकाइया पण्णत्ता, तं जहा-अक्कंते, धंते, पीलिए, सरीराणुगते, ॐ संमुच्छिमे।
१८३. अचित्त वायुकाय पाँच प्रकार का होता है-(१) आक्रान्तवात-भूमि पर जोर-जोर से पैर पटकने से उत्पन्न वायु। (२) ध्मातवात-धौंकनी मशक आदि से उत्पन्न वायु। (३) पीड़ितवात-गीले
वस्त्रादि से निचोड़ने से उत्पन्न वायु। (४) शरीरानुगतवात-शरीर से उच्छ्वास, अपान और उद्गारादि ॐ से निकलने वाली वायु। (५) सम्मूर्छिमवात-पंखे आदि से उत्पन्न वायु।
183. Achitta vayukayik jivas (gross air-bodied beings) are of five kinds—(1) akrant-vaat-wind produced by thumping legs on the ground, (2) dhmaat-vaat-wind produced by bellows and other such instrument, (3) pidit-vaat-wind produced by squeezing wet things like cloth, (4) shariranugat-vaat-wind produced by body (breath, belch, break
wind etc. ) and (5) sammurchhim-vaat-wind produced by fan etc. ॐ विवेचन-सूत्रोक्त पाँचों प्रकार की वायु उत्पत्तिकाल में अचेतन होती है, किन्तु अचित्त वायु से सचित्त ॐ
वायु की विराधना हो सकती है। एते च पूर्वमचेतनास्ततः सचेतना अपि भवन्तीति। (वृत्ति पत्र ३१९ ए) 4 Elaboration-Aforesaid five kinds of air is lifeless when produced but 卐 it may harm the normal organism-infested air. (Vritti, leaf 319) " Papercre NIRGRANTH-PAD (SEGMENT OF ASCETICS) . १८४. पंच णियंठा पण्णत्ता, तं जहा-पुलाए, बउसे, कुसीले, णियंठे, सिणाते।
१८४. निर्ग्रन्थ पाँच प्रकार के हैं-(१) पुलाक-निःसार धान्य कणों के समान जिसका चारित्र निः ॐ सार है (मूल गुणों में भी दोष लगाने वाले निर्ग्रन्थ)। (२) बकुश-जिसके चारित्र में स्थान-स्थान पर दाग म लगे हों, (उत्तर गुणों में दोष लगाने वाले निर्ग्रन्थ)। (३) कुशील-विषय या कषाय सेवन से जिसका फ़
चारित्र कुछ-कुछ मलिन हो गया हो। (४) निर्ग्रन्थ-मोहनीय कर्म का उपशम या क्षय करने वाले ॐ ग्यारहवें-बारहवें गुणस्थानवर्ती साधु। (५) स्नातक-चार घातिकर्मों का क्षय करके तेरहवें-चौदहवें ॥ गुणस्थानवर्ती जिन।
184. Nirgranth (ascetics) are of five kinds-(1) Pulaak-whose conduct is worthless like decayed grain (ascetics not properly observing $ even the basic codes of conduct). (2) Bakush-whose conduct has many
faults (ascetics not properly observing the auxiliary codes of conduct).
(3) Kushila-whose conduct has been tarnished by slight indulgence in 卐 comforts and passions. (4) Nirgranth-the ascetics at the eleventh and
twelfth Gunasthaan who have destroyed or pacified Mohaniya karma.
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स्थानांगसूत्र (२)
(188)
Sthaananga Sutra (2)
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