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गति - आकाश में चलने की क्रिया । प्रज्ञापना पद १६ में इसके १७ भेद हैं प्रस्तुत सूत्र में तीसरे, 5 प्रकार की गति का सम्बन्ध है। (हिन्दी टीका भाग- २ पृष्ठ १७८)
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Elaboration-The common meaning of gati is movement. But here this hi term has a special meaning. Gati is of five kinds – ( 1 ) Janmantar gati-to go from one birth to another or reincarnation. (2) Deshantar gati-to go from one place to another. (3) Bhavopapat gati-to remain in the specific genus, for which a being has acquired specific karmas, from the time of fruition of those karmas till the last moment of their duration. This includes the four gatis including the infernal one. (4) Karmachchhedan gati-the upward movement of a soul after it has shed all karmas. This ; means Siddha gati. (5) Vihaya gati - to move in the space. Prajnapana Sutra mentions seventeen kinds of this gati in verse 16. Here it relates to the third and fourth kind.
इन्द्रियार्थ - पद INDRIYARTH-PAD
(SEGMENT OF SUBJECTS OF SENSE ORGANS)
१७६. पंच इंदियत्था पण्णत्ता, तं जहा- सोतिंदियत्थे, चक्खिंदियत्थे, घाणिंदियत्थे, जिब्भिंदियत्थे, फासिंदियत्थे ।
१७६. इन्द्रियों के पाँच अर्थ (विषय) हैं - (१) श्रोत्रेन्द्रिय का विषय शब्द, (२) चक्षुरिन्द्रिय का रूप, (३) घ्राणेन्द्रिय का गन्ध, (४) रसनेन्द्रिय का रस, (५) स्पर्शनेन्द्रिय का स्पर्श ।
चौथे
5 मुंड - पद MUND-PAD (SEGMENT OF VICTORS)
१७७. पंच मुंडा पण्णत्ता, तं जहा- सोनिंदियमुंडे, चक्खिंदियमुंडे, घाणिंदियमुंडे, जिब्भिंदियमुडे, फासिंदियमुंडे ।
अहवा - पंच मुंडा पण्णत्ता, तं जहा- कोहमुंडे, माणमुंडे, मायामुंडे, लोभमुंडे, सिरमुडे ।
१७७. मुण्ड - (इन्द्रियविषय - विजेता या इन्द्रिय निग्रह करने वाले ) अथवा इन्द्रियों के शुभ-अशुभ विषय में समवृत्ति रखने वाले । पाँच प्रकार के हैं - (१) श्रोत्रेन्द्रियमुण्ड, (२) चक्षुरिन्द्रियमुण्ड, (३) घ्राणेन्द्रियमुण्ड, (४) रसनेन्द्रियमुण्ड, (५) स्पर्शनेन्द्रियमुण्ड ।
पंचम स्थान : तृतीय उद्देशक
176. Indriyas (sense organs) have five arth (subjects ) – (1) the subject of shrotrendriya (ear) is sound, (2) the subject of chakshu-indriya (eyes) i is appearance, ( 3 ) the subject of ghranendriya (nose) is smell, (4) the
i subject of rasanendriya (taste buds) is taste, and (5) the subject of 5 sparshanendriya (touch) is touch.
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Fifth Sthaan: Third Lesson
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