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नागराज
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# (५) गुण की अपेक्षा अवस्थान गुणवाला है। अर्थात् अधर्मास्तिकाय स्वयं ठहरने वाले जीव और
पुद्गलों के ठहरने में सहायक है। ___171. Adharmastikaya is an entity (dravya) that is varna rahit (devoid f of appearance or colour), gandh rahit (devoid of smell), rasa rahit (devoid fof taste), sparsh rahit (devoid of touch), arupi (formless), ajiva (lifeless),
shashvat (eternal), avasthit (indestructible) and integral part of lok (occupied space or universe). Briefly speaking, it has five attributes in context of—(1) dravya (entity), (2) kshetra (space or area), (3) kaal (time), (4) bhaava (state) and (5) guna (properties). ___In context of-(1) Dravya (entity)-Adharmastikaya is one entity. (2) Kshetra (space or area)-it pervades the whole lok. (3) Kaal (time)-it is not that it never existed, it is not that it does not exist, it is not that it will never exist. It existed in the past, it exists in the present and it will continue to exist in the future. Therefore it is dhruva (constant), niyat (fixed), shashvat (eternal), akshaya (imperishable), avyaya (nonexpendable), avasthit (steady), and nitya (perpetual). (4) Bhaava (state)-it is devoid of colour, smell, taste and touch. (5) Guna (properties)—it has the property of inertia. In other words it rests and passively helps beings and matter to come to rest. आकाशास्तिकाय AAKASHASTIKAYA
१७२. आगासत्थिकाए अवण्णे अगंधे अरसे अफासे अरूवी अजीवे सासए अवढिए लोगालोगदब्बे। से समासओ पंचविधे पण्णत्ते, तं जहा-दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, गुणओ।
दबओ णं आगासत्थिकाए एगं दबं। खेत्तओ लोगालोगपमाणमेत्ते। कालओ ण कयाइ णासी, ण कयाइ ण भवति, ण कयाइ ण भविस्सइत्ति-भुविं च भवति य भविस्सति य, धुवे णिइए सासते अक्खए अब्बए अवट्टिते णिच्चे। भावओ अवण्णे अगंधे अरसे अफासे। गुणओ अवगाहणागुणे।।
१७२. आकाशास्तिकाय वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श रहित, अरूपी, अजीव, शाश्वत, अवस्थित और लोकालोक रूप द्रव्य है। संक्षेप में वह-(१) द्रव्य, (२) क्षेत्र, (३) काल, (४) भाव और (५) गुण की अपेक्षा पाँच प्रकार का है
(१) द्रव्य की अपेक्षा-आकाशास्तिकाय एक द्रव्य है। (२) क्षेत्र की अपेक्षा लोक-अलोक प्रमाण सर्वत्र विद्यमान है। (३) काल की अपेक्षा कभी नहीं था, ऐसा नहीं है, कभी नहीं है, ऐसा नहीं है, कभी नहीं होगा, ऐसा नहीं है। वह भूतकाल में था, वर्तमान में है और भविष्य में रहेगा। अतः वह ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित और नित्य है। (४) भाव की अपेक्षा अवर्ण, अगन्ध, अरस और अस्पर्श है। (५) गुण की अपेक्षा-आकाशास्तिकाय अवगाहन (अवकाश देना) गुण वाला है।
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पंचम स्थान : तृतीय उद्देशक
(181)
Fifth Sthaan: Third Lesson
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