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shashvat (eternal), avasthit (indestructible) and integral part of lok 45 4i (occupied space or universe). Briefly speaking, it has five attributes in 4
context of—(1) dravya (entity), (2) kshetra (space or area), (3) kaal (time), (4) bhaava (state) and (5) guna (properties).
In context of41) Dravya (entity)-Dharmastikaya is one entity. (2) Kshetra (space or area)-it pervades the whole lok. (3) Kaal (time)-it is not that it never existed, it is not that it does not exist, it is not that it will never exist. It existed in the past, it exists in the present and it will continue to exist in the future. Therefore it is dhruva (constant), niyat (fixed), shashvat (eternal), akshaya (imperishable), avyaya (nonexpendable), avasthit (steady), and nitya (perpetual). (4) Bhaava (state)—it is devoid of colour, smell, taste and touch. (5) Guna (properties)-it has the property of motion. In other words it moves and passively helps beings and matter to move.
- विवेचन-विशेष शब्दों का अर्थ-अस्तिकाय-(अनेक प्रदेशों का समूह एक द्रव्य) ध्रुव-तीनों काल में ॐ विद्यमान। नियत-सदा समान रहने वाला। शाश्वत-सदा रहने वाला। अक्षय-कभी क्षय नहीं होने वाला।
अव्यय-कभी विनष्ट नहीं होने वाला। अवस्थित-उत्पाद-व्यय होने पर भी स्वरूप में स्थित है। नित्य-उक्त । गुणों से सम्पन्न है।
Elaboration The English terms in parenthesis are self explanatory. __ अधर्मास्तिकाय ADHARMASTIKAYA
१७१. अधम्मत्थिकाए अवण्णे अगंधे अरसे अफासे अरूवी अजीवे सासए अवट्ठिए लोगदव्ये। से समासओ पंचविधे पण्णत्ते, तं जहा-दव्वओ, खेत्तओ, कालओ, भावओ, गुणओ। . दवओ णं अधम्मत्थिकाए एगं दवं। खेत्तओ लोगपमाणमेत्ते। कालओ ण कयाइ णासी, ण कयाइ ण भवति, ण कयाइ ण भविस्सइत्ति-भुविं च भवति या भविस्सति य, धुवे णिइए सासते " अक्खए अब्बए अवट्टिते णिच्चे। भावओ अवण्णे अगंधे अरसे अफासे। गुणओ ठाणगुणे।
१७१. अधर्मास्तिकाय वर्ण रहित, गन्ध रहित, रस रहित, स्पर्श रहित, अरूपी, अजीव, शाश्वत,
अवस्थित और लोक का अंशभूत द्रव्य है। वह संक्षेप में (१) द्रव्य, (२) क्षेत्र, (३) काल, (४) भाव और + (५) गुण की अपेक्षा पाँच प्रकार का है
(१) द्रव्य की अपेक्षा-अधर्मास्तिकाय एक द्रव्य है। (२) क्षेत्र की अपेक्षा-लोकप्रमाण है। (३) काल 卐 की अपेक्षा-अधर्मास्तिकाय कभी नहीं था, ऐसा नहीं है; कभी नहीं है, ऐसा नहीं है, कभी नहीं होगा,
ऐसा नहीं है। वह भूतकाल में था, वर्तमान में है और भविष्य में रहेगा। अतः वह ध्रुव, नियत, शाश्वत, ॐ अव्यय, अवस्थित और नित्य है। (४) भाव की अपेक्षा अवर्ण, अगन्ध, अरस और अस्पर्श है।
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| स्थानांगसूत्र (२)
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Sthaananga Sutra (2)
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