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१४८. आचारप्रकल्प (निशीथ सूत्रोक्त प्रायश्चित्त) पाँच प्रकार का है-(१) मासिक उद्घातिक लघु मासरूप प्रायश्चित्त। (२) मासिक अनुद्घातिक-गुरु मासरूप प्रायश्चित्त। (३) चातुर्मासिक उद्घातिकॐ लघु चार मासरूप प्रायश्चित्त। (४) चातुर्मासिक अनुद्घातिक-गुरु चार मासरूप प्रायश्चित्त।
(५) आरोपणा-एक दोष से प्राप्त प्रायश्चित्त में दूसरे दोष के सेवन से प्राप्त प्रायश्चित्त का ॥ आरोपण करना।
148. Achar-prakalp (atonement for faults related to conduct as precribed in Nisheeth Sutra) is of five kinds(1) masik udghatik- 41 curtailment in month long prescribed atonement as simple atonement, (2) masik anudghatik-no curtailment in month long prescribed
atonement as harsh atonement, (3) chaturmasik udghatik-curtailment si in four month long prescribed atonement as simple atonement,
(4) chaturmasik anudghatik-curtailment in four month long prescribed atonement as harsh atonement and (5) aropan-to include atonement of new fault with the one already in process.
विवेचन-मासिक तपश्चर्या वाले प्रायश्चित्त में कुछ दिन कम करना मासिक उद्घातिक या लघुमास ॐ प्रायश्चित्त हैं, तथा मासिक तपश्चर्या वाले प्रायश्चित्त में से कुछ भी अंश कम नहीं करना, मासिक - अनुद्घातिक या गुरुमास प्रायश्चित्त हैं। यही अर्थ चातुर्मासिक उद्घातिक और अनुदद्घातिक का है। * आरोपणा का विवेचन आगे के सूत्र में है। ___Elaboration-English meaning is self-explanatory. आरोपणा-पद AROPANA-PAD (SEGMENT OF STALLING)
१४९. आरोवणा पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा-पट्टविया, ठविया, कसिणा, अकसिणा, हाडहडा।
१४९. आरोपणा पाँच प्रकार की होती है। (१) प्रस्थापिता आरोपणा-प्रायश्चित्त में प्राप्त अनेक तपों # में से किसी एक तप को प्रारम्भ करना। (२) स्थापिता आरोपणा-प्रायश्चित्त रूप से प्राप्त तपों को 卐 गुरुजनों की वैयावृत्त्य आदि किसी कारण से प्रारम्भ न करना। भविष्य के लिए स्थापित किये रखना। म ! (३) कृत्स्ना आरोपणा-पूरे छह मास की तपस्या का प्रायश्चित्त देना, क्योंकि वर्तमान जिनशासन में : ॐ उत्कृष्ट तपस्या की सीमा छह मास की मानी गई है। (४) अकृत्स्ना आरोपणा-एक दोष के प्रायश्चित्त को म करते हुए दूसरे दोष को करने पर तथा उसके प्रायश्चित्त को करते हुए तीसरे दोष के करने पर यदि 5
प्रायश्चित्त तपस्या का काल छह मास से अधिक होता है तो उसे छह मास में ही आरोपण कर दिया जाता है। क्योंकि प्रायश्चित्त के रूप में छह मास से अधिक का तप नहीं किया जाता। अतः पूरा
प्रायश्चित्त नहीं कर सकने के कारण उसे अकृत्स्ना आरोपणा कहा जाता है। (५) हाडहडा आरोपणा-जो ॐ प्रायश्चित्त प्राप्त हो, उसे शीघ्र ही दे देना।
स्थानांगसूत्र (२)
(168)
Sthaananga Sutra (2) 9555555555555555555555555555555555555
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