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रज-आदान-वमन-सूत्र RAJ-ADAAN-VAMAN-PAD
(SEGMENT OF INFLOW AND SHEDDING OF KARMA-DUST) १२८. पंचहिं ठाणेहिं जीवा रयं आदिजंति, तं जहा-पाणातिवातेणं, [मुसावाणं, अदिण्णादाणेणं मेहुणेणं ], परिग्गहेणं। १२९. पंचहिं ठाणेहिं जीवा रयं वमंति, तं जहा-5
पाणातिवातवेरमणेणं, [ मुसावायवेरमणेणं, अदिण्णादाणवेरमणेणं, मेहुणवेरमणेणं ], परिग्गहवेरमणेणं। + १२८. पाँच कारणों से जीव कर्म-रज को ग्रहण (कर्मबन्ध) करते हैं-(१) प्राणातिपात से, 5
[(२) मृषावाद से, (३) अदत्तादान से, (४) मैथुनसेवन से], (५) परिग्रह से। १२९. पाँच कारणों से + जीव कर्म-रज को वमन (कर्मों की निर्जरा) करते हैं-(१) प्राणातिपात-विरमण से,
[(२) मृषावाद-विरमण से, (३) अदत्तादान-विरमण से], (४) मैथुन-विरमण से, 9 (५) परिग्रह-विरमण से।
128. For five reasons beings acquire the dust of karma (karmic bondage)(1) by pranatipat (harming or destroying life), (2) by
mrishavad (falsity), (3) by adattadan (stealing), (4) by maithun (sexual 4 activities) and (5) by parigraha (possession). 129. For five reasons
shed the dust of karma (karmic bondage)-(1) by pranatipat viraman (to abstain completely from harming or destroying life), (2) by mrishavad viraman (to abstain completely from falsity), (3) by adattadan viraman (to abstain completely from acts of stealing), (4) by maithun viraman (to abstain completely from indulgence in sexual activities) and (5) by parigraha viraman (to abstain completely from acts of possession of things). दत्ति-पद DATTI-PAD (SEGMENT OF SERVINGS)
१३०. पंचमासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स अणगारस्स कप्पंति पंच दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, पंच पाणगस्स।
१३०. पंचमासिकी भिक्षुप्रतिमा को धारण करने वाले अनगार को भोजन की पाँच दत्तियाँ और * पानक की पाँच दत्तियाँ ग्रहण करना कल्पता है।
130. An ascetic observing a five-month bhikshu pratima (special austerities) is allowed to take five datti (servings) of food and five datti (servings) of drinks. उपघात-विशोधि पद UPAGHAT-VISHODHI-PAD (SEGMENT OF IMPURITY AND PURITY)
१३१. पंचविधे उवघाते पण्णत्ते, तं जहा-उग्गमोवघाते, उप्पायणोवघाते, एसणोवघाते, परिकम्मोवघाते, परिहरणोवघाते।
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स्थानांगसूत्र (२)
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(160)
Sthaananga Sutra (2)
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