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११३. मिच्छादिवियाणं णेरइयाणं पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-[ आरंभिया, पारिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाणकिरिया ], मिच्छादसणवत्तिया। ११४. एवं-सव्वेसिंह 卐 णिरंतरं जाव मिच्छाद्दिट्ठियाणं वेमाणियाणं, णवरं-विगलिंदिया मिच्छद्दिट्ठी ण भण्णंति। सेसं तहेव।।
११३. मिथ्यादृष्टि नारकों के पाँच क्रियाएँ हैं-(१) आरम्भिकी क्रिया, [(२) पारिग्रहिकी क्रिया, (३) मायाप्रत्यया क्रिया, (४) अप्रत्याख्यान क्रिया], (५) मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया। ११४. इसी प्रकार
मिथ्यादृष्टि वैमानिकों तक सभी दण्डकों में पाँचों क्रियाएँ होती हैं। केवल विकलेन्द्रियों के साथ मिथ्यादृष्टि ॐ पद नहीं कहना चाहिए, क्योंकि वे सभी मिथ्यादृष्टि ही होते हैं। शेष सभी पूर्ववत् जानना चाहिए। ___113. Mithyadrishti naaraks (unrighteous infernal beings) indulge in
five kriyas (activities)-(1) arambhiki kriya, (2) paarigrahiki kriya, । (3) mayapratyaya kriya, (4) apratyakhyan kriya and (5) mithyadarshan pratyaya kriya. 114. In the same way all beings up to mithyadrishti Vaimaniks indulge in five kriyas. Only vikalendriyas (one to four sensed beings) should be excluded because all of them are exclusively unrighteous. Rest should be read as before.
११५. पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-काइया, आहिगरणिया, पाओसिया, 卐 पारितावणिया, पाणातिवातकिरिया। ११६. णेरइयाणं पंच एवं चेव। एवं-णिरंतरं जाव
वेमाणियाणं। . म ११५. पाँच क्रियाएँ हैं-(१) कायिकी क्रिया, (२) आधिकरणिकी क्रिया, (३) प्रादोषिकी क्रिया,
(४) पारितापनिकी क्रिया, (५) प्राणातिपातिकी क्रिया। ११६. नारकी जीवों में पाँचों ही क्रियाएँ होती म हैं। इसी प्रकार वैमानिकों तक सभी दण्डकों में ये ही पाँच क्रियाएँ हैं।
115. Kriyas (activities) are of five kinds-(1) kayiki kriya. (2) aadhikaraniki kriya, (3) pradoshiki kriya (done in passion), (4) paritapini kriya (hurting others) and (5) pranatipatiki kriya (activity leaching destruction of life-force). 116. Naaraki jivas (infernal beings)
also have all these five kriyas. In the same way all dandaks (places of # suffering) up to Vaimaniks have these five kriyas.
११७. पंच किरियाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-आरंभिया, (पारिग्गहिया, मायावत्तिया, # अपच्चक्खाणकिरिया), मिच्छादसणवत्तिया। ११८. णेरइयाणं पंच किरिया णिरंतरं जाव वेमाणियाणं।
११७. पुनः पाँच क्रियाएँ हैं-(१) आरम्भिकी क्रिया, (२) पारिग्रहिकी क्रिया, (३) मायाप्रत्यया क्रिया, (४) अप्रत्याख्यान क्रिया, (५) मिथ्यादर्शन क्रिया। ११८. नारकी जीवों से लेकर निरन्तर वैमानिक तक सभी दण्डकों में ये पाँच क्रियाएँ जाननी चाहिए।
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पंचम स्थान : द्वितीय उद्देशक
(153)
Fifth Sthaan : Second Lesson
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