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इच्चेतेहिं पंचहिं ठाणेहिं समणे णिगंथे (रायंतेउरमणुपविसमाणे) णातिक्कमइ।
१०२. पाँच कारणों से श्रमण निर्ग्रन्थ राजा के अन्तःपुर (रणवास) में प्रवेश करता हुआ तीर्थंकरों 卐 की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है। जैसे-(१) यदि नगर चारों ओर से परकोटे से घिरा हो, उसके
द्वार बन्द कर दिये गये हों, बहुत-से श्रमण-माहन भक्त-पान के लिए नगर से बाहर न निकल सकें, या + ॐ प्रवेश न कर सकें, तब उस स्थिति को बतलाने के लिए राजा के अन्तःपुर में प्रवेश कर सकता है। + (२) प्रातिहारिक-(वापस करने को कहकर लाये गये) पीठ, फलक, शय्या, संस्तारक को वापस देने के :
लिए। (३) मार्ग चलते हुए दुष्ट घोड़े या हाथी के सामने आने पर भयभीत साधु राजा के अन्तःपुर में 卐 प्रवेश कर सकता है। (४) कोई अन्य व्यक्ति सहसा बल-पूर्वक बाहु पकड़कर ले जाये। (५) कोई साधु
बाहर आराम-पुष्पोद्यान या उद्यान-वृक्षोद्यान में ठहरा हो और वहाँ (क्रीड़ा करने के लिए राजा का 卐 अन्तःपुर आ जावे), राजपुरुष उस स्थान को चारों ओर से घेर ले और निकलने के द्वार बन्द कर दें,
तब वह वहाँ रह सकता है। ___इन पाँच कारणों से श्रमण-निर्ग्रन्थ राजा के अन्तःपुर में प्रवेश करता हुआ तीर्थकरों की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है।
102. A Shraman nirgranth does not defy the order of Tirthankars if he enters the antah-pur (inner quarters of a king) for five reasons—(1) If
the city is surrounded by a parapet wall, its gates are closed and it is not 5. possible for many ascetics to go out of or enter the city to seek alms. An in
ascetic is allowed to enter the antah-pur to inform about that situation.
(2) For returning the pratiharik (borrowed) things including peeth + (stool), falak (plank), shayya (bed) and samstarak (bed of hay). (3) A
frightened ascetic is allowd to enter the antah-pur for safety when si affronted by wild horse or elephant while walking on the way. (4) If
someone takes an ascetic physically into the antah-pur by force. (5) If an ascetic is staying in the orchard or garden and the royal family comes to the garden for entertainment, the gaurds surround the garden and close the gates. In such a situation the ascetic is allowed to remain there.
A Shraman nirgranth does not defy the order of Tirthankars if he enters the antah-pur for the said five reasons.
विवेचन-मुनि दो प्रकार की वस्तुएँ ग्रहण करता है-अप्रातिहारिक-जो वापस लौटाई नहीं जाती हो, जैसे-वस्त्र, पात्र, भोजन, कम्बल आदि। प्रातिहारिक-जो लौटाई जा सकती हैं-जैसे-पट्ट, फलक, शय्या, ॐ संस्तारक आदि। [ [वृत्तिकार ने निशीथभाष्य की गाथाएँ उद्धृत करके अन्तःपुर प्रवेश के अनेक दोष बताये हैं। 卐 (वृत्ति भाग-२, पृष्ठ ५३७)] म | स्थानांगसूत्र (२)
Sthaananga Sutra (2)
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