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________________ ה ה ה ה ת ת ת ת נ ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ८६. पउमप्पभस्स चित्ता, मूले पुण होइ पुष्पदंतस्स। पुव्वाइं आसाढा, सीयलस्सुत्तर विमलस्स भद्दवता ॥१॥ रेवतिता अणंतजिणो, पूसो धम्मस्स संतिणो भरणी। कुंथुस्स कत्तियाओ, अरस्स तह रेवतीतो य॥२॥ मुणिसुब्बयस्स सवणो, आसिणि णमिणो य णेमिणो चित्ता। पासस्स विसाहाओ, पंच य हत्थुत्तरे वीरो॥३॥ [ सीयले णं अरहा पंचपुब्बासाढे हुत्था, तं जहा-पुब्बासाढाहिं चुते चइत्ता गभं वक्कंते। ८७. विमले णं अरहा पंचउत्तराभद्दवए हुत्था, तं जहा-उत्तराभद्दवयाहिं चुते चइत्ता गब्भं वक्कंते। ८८. अणंते णं अरहा पंचरेवतिए हुत्था, तं जहा-रेवतिहिं चुते चइत्ता गभं वक्कंते। # ८९. धम्मे णं अरहा पंचपूसे हुत्था, तं जहा-पूसेणं चुते चइत्ता गब्भं वक्कते।९०. संती णं अरहा म पंचभरणीए हुत्था, तं जहा-भरणीहिं चुते चइत्ता गठभं वक्कंते। ९१. कुंथू णं अरहा पंचकत्तिए । हुत्था, तं जहा-कत्तियाहिं चुते चइत्ता गब्भं वक्कंते। ९२. अरे णं अरहा पंचरेवतिए हुत्था, तं जहा- रेवतिहिं चुते चइत्ता गभं वक्कंते। ९३. मुणिसुब्बए णं अरहा पंचसवणे हुत्था, तं जहा-सवणेणं चुते की # चइत्ता गठभं वकंते। ९४. णमी णं अरहा पंचआसिणीए हुत्था, तं जहा-आसिणीहिं चुते चइत्ता 5 गभं वक्कते। ९५. णेमी णं अरहा पंचचित्ते हुत्था, तं जहा-चित्ताहिं चुते चइत्ता गभं वक्कते। ९६. पासे णं अरहा पंचविसाहे हुत्था, तं जहा-विसाहाहि चुते चइत्ता गब्भं वक्कंते।] # ८६. शीतलनाथ (दसवें) तीर्थंकर के पाँच कल्याणक पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में हुए। (१) पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में 5 में स्वर्ग से च्युत हुए और च्युत होकर गर्भ में आये। इत्यादि। ८७. विमल (तेरहवें) तीर्थंकर के पाँच कल्याणक उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में हुए। (१) उत्तराभाद्र पद है । नक्षत्र में स्वर्ग से च्युत हुए च्युत होकर गर्भ में आये। इत्यादि। ८८. चौदहवें अनन्तनाथ तीर्थंकर के 5 - पाँच कल्याणक रेवती नक्षत्र में हए. जैसे-(१) रेवती नक्षत्र में स्वर्ग से च्यत हए और च्युत होकर गर्भ - में आये। इत्यादि। ८९. धर्म तीर्थंकर (१५) के पाँच कल्याणक पुष्य नक्षत्र में हुए, जैसे-(१) पुष्य फ़ । नक्षत्र में स्वर्ग से च्युत हुए और च्युत होकर गर्भ में आये। इत्यादि। ९०. शान्ति तीर्थंकर (१६) के पाँच कल्याणक भरणी नक्षत्र में हुए, जैसे-(१) भरणी नक्षत्र में स्वर्ग से च्युत हुए और च्युत होकर गर्भ में 5 आये। इत्यादि। ९१. कुन्थु तीर्थंकर (१७) के पाँच कल्याणक कृत्तिका नक्षत्र में हुए, जैसे (१) कृत्तिका नक्षत्र में स्वर्ग से च्युत हुए और च्युत होकर गर्भ में आये। इत्यादि। ९२. अर तीर्थंकर # (१८) के पाँच कल्याणक रेवती नक्षत्र में हुए, जैसे-(१) रेवती नक्षत्र में स्वर्ग से च्युत हुए और च्युत होकर गर्भ में आये। इत्यादि। ९३. मुनिसुव्रत तीर्थंकर (२०) के पाँच कल्याणक श्रवण नक्षत्र में हुए, जैसे-(१) श्रवण नक्षत्र में स्वर्ग से च्युत हुए और च्युत होकर गर्भ में आये। इत्यादि। ९४. नमि तीर्थंकर # (२१) के पाँच कल्याणक अश्विनी नक्षत्र में हुए, जैसे-(१) अश्विनी नक्षत्र में स्वर्ग से च्युत हुए और ת ת ת ת ת ת ת ת ת hhhhhhhhh पंचम स्थान : प्रथम उद्देशक (135) Fifth Sthaan: First Lesson Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002906
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2004
Total Pages648
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_sthanang
File Size20 MB
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