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जमक 55555555555555
5 55555 (3) dharma deva-acharya, upadhyaya and other religious leaders, (4) Devadhideva-Tirthankars, and (5) bhaava deva-god presently in divine state.
परिचारणा-पद PARICHARANA-PAD (SEGMENT OF SEXUAL GRATIFICATION)
५४. पंचविहा परियारणा पण्णत्ता, तं जहा-कायपरियारणा, फासपरियारणा, रूवपरियारणा, सद्दपरियारणा, मणपरियारणा। ___ ५४. परिचारणा पाँच प्रकार की है-(१) काय-परिचारणा-मनुष्यों के समान शरीर से मैथुन सेवन। (२) स्पर्श परिचारणा-स्त्री-पुरुष का परस्पर शरीरालिंगन। (३) रूपपरिचारणा-स्त्री-पुरुष का काम-भाव से परस्पर रूप देखना। (४) शब्दपरिचारणा-काम-भाव से स्त्री-पुरुष के परस्पर शब्द सुनना। (५) मनःपरिचारणा-स्त्री-पुरुष का काम-भाव से परस्पर चिन्तन।
54. Paricharana (sexual gratification) is of five kinds—(1) Kaya paricharana-sexual gratification through body as the humans do, (2) sparsh paricharana-sexual gratification through touch (embracing), (3) rupa paricharana-sexual gratification through vision or to look at each other with lust, (4) shabd paricharana-sexual gratification through sound or to listen to each other with lust and (5) manah paricharana-sexual gratification through thoughts or to think of each other with lust.
विवेचन-देवों में भी काम वासना होती है। उनकी काम प्रवृत्ति रूप मैथुन सेवन को 'परिचारणा' कहा जाता है।
भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क तथा सौधर्म, ईशान कल्प तक के देवों में काय परिचारणा होती है। स्पर्शपरिचारणा तीसरे, चौथे देवलोक तक। रूपपरिचारणा, पाँचवें, छठे कल्प तक, शब्दपरिचारणा सातवें, आठवें कल्प तक तथा मनःपरिचारणा-शेष नवें से बारहवें देवलोक तक है। इनसे ऊपर के 5 देवलोक में किसी प्रकार की परिचारणा नहीं होती। (वृत्ति भाग-२ पृष्ठ ५२२ प्रज्ञापना सूत्र ३४वाँ पद)
Elaboration--This aphorism is specifically about sexual gratification of divine beings, which is called paricharana. Gods belonging to Bhavanapati, Vaanavyantar, Jyotishk, Saudharma and Ishan realms have kaya paricharana. Sparsh paricharana is applicable in third and fourth Devalok. Rupa paricharana is applicable to fifth and sixth kalp, shabd paricharana to seventh and eighth kalp and manah paricharana to the remaining kalps (heavenly abodes) from ninth to twelfth. Beyond this there is no paricharana or sexual gratification. (Vritti, part-2, p. 522; Prajnapana Sutra, verse 34)
| पंचम स्थान : प्रथम उद्देशक
(115)
Fifth Sthaan: First Lesson
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