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________________ 59555555 )))) ) ))))))) )))))) (२) कुंथुरासिभूतं वा पुढविं पासित्ता तप्पढमयाए खंभाएज्जा। (३) महतिमहालयं वा महोरगसरीरं पासित्ता तप्पढमयाए खंभाएज्जा। (४) देवं वा महिड्डियं जाव (महज्जुइयं महाणुभागं महायसं महाबलं) महासोरां पासित्ता तप्पढमयाए खंभाएज्जा। (५) पुरेसु वा पोराणाई उरालाई महतिमहालयाई महाणिहाणाई पहीणसामियाइं पहीणसेउयाई पहीणगुत्तागाराई उच्छिण्णसामियाइं उच्छिण्णसेउयाइं उच्छिण्णगुत्तागाराइं जाइं इमाइं गामागर-णगर-खेड-कब्बडमंडब-दोणमुहपट्टणासम-संबाह-सण्णिवेसेसु सिंघाडगतिगचउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह पहेसु णगर-णिद्धमणेसु सुसाण-सुण्णागार-गिरिकंदरसंति-सेलोवट्टावण-भवण-गिहेसु संणिक्खित्ताइ चिटुंति, ताई वा पासित्ता तप्पढमयाए खंभाएज्जा। इच्चेतेहिं पंचहिं ठाणेहिं ओहिदंसणे समुप्पज्जिउकामे तप्पढमयाए खंभाएज्जा। २१. पाँच कारणों से अवधि-(ज्ञान-) दर्शन उत्पन्न होता हुआ अपने प्रारम्भिक क्षणों में ही स्तम्भित-(विचलित) हो जाता है (१) पृथ्वी को छोटी या अल्पजीव वाली देख कर, (विक्षोभ व विस्मय के कारण) (२) कुंथु जैसे अति क्षुद्र (सूक्ष्म) जीवराशि से भरी हुई पृथ्वी को देखकर, (दया के कारण) (३) बड़े-बड़े महोरगों(साँपों) के शरीरों को देखकर, (भय के कारण) (४) महाऋद्धि वाले, महाद्युति वाले, महानुभाव, महान् यशस्वी, महान् बलशाली और महान् सुख वाले देवों को देखकर, (लालसा वश) (५) पुरों में, ग्रामों में, आकरों में, नगरों में, खेटों में, कर्वटों में, मडम्बों में, द्रोणमुखों में, पत्तनों में, आश्रमों में, संबाधों में, सन्निवेशों में, नगरों के शृंगाटकों, तिराहों, चौकों, चौराहों, चौमुहानों और छोटे-बड़े मार्गों में, गलियों में, नालियों में, श्मशानों में, शून्य गृहों में, गिरिकन्दराओं में, शान्तिगृहों में, शैलगृहों में, उपस्थापनगृहों और भवन गृहों में दबे हुए एक से एक बड़े महानिधानों (धन के भण्डारों या खजानों को) को जिनके कि स्वामी मर चुके हैं, जिन तक पहुँचने के मार्ग प्रायः नष्ट हो चुके हैं, जिनके नाम और संकेत भुला दिये गये हैं और जिनके उत्तराधिकारी कोई नहीं हैं। उक्त पाँच कारणों से उत्पन्न होता हुआ अवधि-(ज्ञान-)-दर्शन अपने प्राथमिक क्षणों में ही स्तम्भित अथवा चलित हो जाता है। 21. For five reasons emerging avadhi (inana and) darshan gets stambhit (arrested) during the initial moments of its emergence (1) by seeing the earth to be infested with minute organisms (out of dejection and surprise). (2) by seeing the earth abounding in small worm-like beings (out of compassion). (3) by seeing the bodies of giant snake-like reptiles (out of fear). (4) by seeing gods with supreme wealth, - पंचम स्थान : प्रथम उद्देशक (95) Fifth Sthaan: First Lesson 卐 ) ) )) ) )) )) ) )) ) ) ) ) ) ) )) ) ) )) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002906
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2004
Total Pages648
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_sthanang
File Size20 MB
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