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६२१. चार कारणों से विद्यमान गुणों का भी विनाश होता है । (१) क्रोध से, (२) प्रतिनिवेश सेअहंकार या ईर्ष्या वश-दूसरों की पूजा-प्रतिष्ठा न सह सकने से, (३) अकृतज्ञता से (कृतघ्न होने से ), (४) मिथ्याभिनिवेश (दुराग्रह) से ।
शरीर - पद SHARIRA-PAD (SEGMENT OF BODY)
६२३. णेरइयाणं चउहिं ठाणेहिं सरीरुप्पत्ती सिया, तं जहा- कोहेणं, माणेणं, मायाए, लोभेणं । ६२४. एवं जाव वेमाणियाणं ।
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621. For four reasons even the existing virtues are destroyed — 5 (1) krodh (by anger), (2) pratinivesh (by not tolerating worship or honour of others out of ego or jealousy), (3) akritajnata (by being ungrateful) and க (4) mithyabhinivesh (by being perversely dogmatic).
६२२. चउहिं ठाणेहिं असंते गुणे दीवेज्जा, तं जहा - अब्यासवत्तियं, परच्छंदाणुवत्तियं, फ्र कज्जहेउ, कतपडिकतेति वा ।
623. Infernal beings acquire (utpatti) a body due to four reasons— (1) krodh (anger), (2) maan (conceit), (3) maaya (deceit) and (4) lobh (greed). 624. In the same way all beings of all dandaks acquire a body due the said four reasons.
६२२. चार कारणों से अविद्यमान (अप्रकट) गुणों का भी दीपन (प्रकाशन) होता है- (१) अभ्यासवृत्ति 5 से-गुण- ग्रहण का स्वभाव, या गुणों का निरन्तर अभ्यास करते रहने से । ( २ ) परच्छन्दानुवृत्ति से - गुणियों व गुरुजनों के अनुकूल आचरण करने से, (३) कार्यहेतु से - अपने प्रयोजन की सिद्धि के लिए दूसरों के अनुकूल व्यवहार से, (४) उपकारी के प्रति कृतज्ञता का भाव रखने से ।
६२५. रइयाणं चउट्ठाणणिव्यत्तिते सरीरे पण्णत्ते, तं जहा -कोहणिव्वत्तिए, जाव ( माणव्वित्तिए, मायाणिव्वत्तिए), लोभणिव्यत्तिए । ६२६. एवं जाव वेमाणियाणं ।
622. For four reasons even the non existing virtues come to light— (1) abhyas vritti (by tendency of acquiring virtues and continued practice 5 thereof), (2) parachchhandanuvritti (by following conduct prescribed and liked by the virtuous and seniors), (3) karyahetu (by favourable behaviour to accomplish the desired) and (4) kritajnata (by being grateful for favours).
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चतुर्थ स्थान : चतुर्थ उद्देशक
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६२३. चार कारणों से नारक जीवों के शरीर की उत्पत्ति होती है - (१) क्रोध से, (२) मान से, 5 (३) माया से, (४) लोभ से । ६२४. इसी प्रकार वैमानिकपर्यन्त सभी दण्डकों के जीवों के शरीरों की उत्पत्ति के उक्त चार-चार कारण होते हैं ।
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Fourth Sthaan: Fourth Lesson
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