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615. Manushyas (human beings) have four gati and four aagati --
A human being incarnates into the genus of human beings coming from narak gati, tiryanch gati, manushya gati and deva gati. A human being leaving the genus of human beings (on death) reincarnates into narak gati, tiryanch gati, manushya gati and deva gati. संयम-असंयम-पद SAMYAM-ASAMYAM-PAD
(SEGMENT OF DISCIPLINE AND INDISCIPLINE) ६१६. बेइंदियाणं जीवा असमारभमाणस्स चउबिहे संजमे कज्जति, तं जहा-जिब्भामयातो सोक्खातो अववरोवित्ता भवति, जिब्भामएणं दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति, फासामयातो सोक्खातो अववरोवित्ता भवति, जिब्भामएणं दुक्खेणं असंजोगेत्ता भवति, फासामयातो सोक्खातो अववरोवेत्ता है भवति, फासमएणं दुक्खेणं असंजोगित्ता भवति।
६१६. द्वीन्द्रिय जीवों की हिंसा नहीं करने वाले पुरुष को चार प्रकार का संयम होता है
(१) वह जीवों के जिह्वामय सुख का घात नहीं करता है। (२) वह जीवों के जिह्वामय दुःख का , संयोग नहीं करता है। (३) वह जीवों के स्पर्शमय सुख का घात नहीं करता है। (४) वह जीवों के स्पर्शमय दुःख का संयोग नहीं करता है। ___616. A person not harming two sensed beings accomplishes four kinds of discipline
(1) He does not terminate the pleasure derived through jihva (tongue or sense organ of taste) by these beings. (2) He does not enforce the misery experienced through jihva on these beings. (3) He does not terminate the pleasure derived through sparsh (sense organ of touch) by these beings. (2) He does not enforce the misery experienced through sparsh on these beings.
६१७. बेइंदिया णं जीवा समारभमाणस्स चउविहे असंजमे कज्जति, तं जहा-जिभामयातो सोक्खातो ववरोवित्ता भवति, जिब्भामएणं दुक्खेणं संजोगित्ता भवति, फासामयातो सोक्खातो ववरोवेत्ता भवति, (फासामएणं दुक्खेणं संजोगित्ता भवति)।
६१७. द्वीन्द्रिय जीवों की हिंसा करने वाले पुरुष को चार प्रकार का असंयम होता है
(१) जीवों के जिह्वामय सुख का घात करता है। (२) जीवों के जिह्वामय दुःख का संयोग करता है। (३) जीवों के स्पर्शमय सुख का घात करता है। (४) जीवों के स्पर्शमय दुःख का संयोग करता है। ___617. A person harming two sensed beings accomplishes four kinds of indiscipline
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| चतुर्थ स्थान : चतुर्थ उद्देशक
(71)
Fourth Sthaan : Fourth Lesson h5555555555555555555555555555555555d
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