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from desire of possessions etc. but appears to be liberated (a charlatan) and (4) some person is neither liberated from desire of possessions etc. nor appears to be liberated (an ordinary householder).
गति - आगति-पद GATI-AAGATI - PAD
(SEGMENT OF REINCARNATION AND INCARNATION)
६१४.
वा,
पंचिंदियतिरिक्खजोणिया चउगइया चउआगइया पण्णत्ता, तं जहापंचिंदियतिरिक्खजोणिए पंचिंदियतिरिक्खजोणिएसु उववज्जमाणे रइएहिंतो तिरिक्खजोणिएहिंतो वा, मणुस्सेहिंतो वा, देवेहिंतो वा उववज्जेज्जा से चेव णं से पंचिंदियतिरिक्खजोणिए पंचिंदियतिरिक्खजोणियत्तं विप्पजहमाणे णेरइयत्ताए वा, जाव (तिरिक्खजोणियत्ताए वा, मणुस्सत्ताए वा ), देवत्ताए वा गच्छेज्जा ।
६१४. पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीव चार गति तथा चार आगति वाले होते हैं
पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीव, पंचेन्द्रिय तिर्यंच गति में नरक से, तिर्यंचगति से, मनुष्य गति से और देव गति से आकर उत्पन्न होता है। पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनिक जीव, पंचेन्द्रिय तिर्यंचयोनि को छोड़ता हुआ ( मर कर ) नारकियों में, तिर्यंचयोनिकों में, मनुष्यों में या देवों में (आठवें देवलोक तक ) जाकर उत्पन्न होता है।
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614. Panchendriya Tiryagyonik jivas (five sensed animals) have four gati (reincarnation from this birth to the next birth) and four aagati (incarnation from previous birth to the present birth)
A five sensed animal incarnates into the genus of five sensed animals coming from narak gati (genus of infernal beings), tiryanch gati (animal genus), manushya gati (genus of human beings) and deva gati (divine genus). A five sensed animal leaving the genus of five sensed animals (on death) reincarnates into narak gati (genus of infernal beings), tiryanch
६१५. मणुस्सा चउगइया चउआगइया (पण्णत्ता, तं जहा - मणुस्से मणुस्सेसु उववज्जमाणे इहिंतो वा, तिरिक्खजोणिएहिंतो वा, मणुस्सेहिंतो वा देवेहिंतो वा उववज्जेज्जा ।)
5 gati (animal genus), manushya gati (genus of human beings) and deva 5
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gati (divine genus up to eighth Devalok).
से चेव णं से मणुस्से मणुस्सत्तं विप्पजहमाणे णेरइयत्ताए वा तिरिक्खजोणियत्ताए वा, मस्सत्ता वा, देवत्ताए वा गच्छेज्जा) ।
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६१५. मनुष्य चार गति तथा चार आगति वाले होते हैं
(१) मनुष्य मनुष्यों में उत्पन्न होता हुआ नारकियों से, या तिर्यंचयोनि से मनुष्यों से, या देवों से आकर उत्पन्न होता है। (२) मनुष्य मनुष्यपर्याय को छोड़ता हुआ नारकियों में तिर्यंचयोनियों में, मनुष्यों में, या देवों में उत्पन्न होता है ।)
स्थानांगसूत्र (२)
(70)
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Sthaananga Sutra (2)
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