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renouncing nothing is asamyat and a liberated soul or Siddha is no samyat-no asamyat.
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मित्र- अमित्र - पद MITRA-AMITRA PAD (SEGMENT OF FRIEND AND NON-FRIEND) ६१०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - मित्ते णाममेगे मित्ते, मित्ते णाममेगे अमित्ते, अमित्ते णाममेगे मित्ते, अमित्ते णाममेगे अमित्ते ।
६१०. पुरुष चार प्रकार के हैं - ( 9 ) कोई व्यवहार से मित्र और हृदय से भी मित्र होता है। (२) कोई व्यवहार से मित्र, किन्तु हृदय से मित्र नहीं होता । (३) कोई व्यवहार से मित्र नहीं होता, किन्तु हृदय से मित्र होता है । (४) कोई न व्यवहार से मित्र होता है और न हृदय से मित्र होता है।
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610. Purush (men) are of four kinds – ( 1 ) Someone behaves like a 5 friend and is friend by heart also, (2) someone behaves like a friend but 5 is non-friend by heart, ( 3 ) someone does not behave like a friend but is
friend by heart, and (4) someone does not behave like a friend and is also not a friend by heart.
विवेचन - चारों प्रकार के मित्रों की व्याख्या अनेक प्रकार से की जा सकती है - (१) लोकं एवं
परलोक दोनों का उपकारी होने से। जैसे-सद्गुरु आदि । (२) कोई लोक का उपकारी, किन्तु परलोक के
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फ साधक संयमादि में बाधक होने से जैसे पत्नी आदि । (३) कोई प्रतिकूल व्यवहार करते हैं, किन्तु वैराग्य
उत्पत्ति में सहायक बनते हैं। जैसे कलहकारिणी स्त्री आदि । (४) कोई इस लोक में प्रतिकूल व्यवहार करते हैं उनके संक्लेश पैदा करने से दुर्गति के भी कारण होते हैं।
Elaboration-All these four kinds of friends can be explained many ways. For example-(1) Being helpful both for this life as well as the next, such as a spiritual teacher. (2) Being helpful for this life but damaging for the next life by way of creating hurdles on the path of ascetic-discipline, such as loving wife. (3) Being detrimental for this life but helpful for next by way of pushing towards renunciation, such as quarrelsome wife. (4) Being detrimental for this life and the next as well by way of causing torment and inspiring retaliation such as a foe.
६११. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - मित्ते णाममेगे मित्तरूवे, मित्ते णाममेगे अमित्तरूवे, अमित्ते णाममेगे मित्तरूवे, अमित्ते णाममेगे अमित्तरूवे ।
६११. पुरुष चार प्रकार के हैं - (१) कोई मित्र होता है और मित्र के समान व्यवहार करता है। (२) कोई मित्र होता है, किन्तु अमित्र के समान व्यवहार करता है। (३) कोई अमित्र होता है, किन्तु मित्र के समान व्यवहार करता है । (४) कोई अमित्र होता है और अमित्र के समान व्यवहार करता है। 611. Purush (men) are of four kinds-(1) someone is a true friend and also appears to be a friend, (2) someone is friend but appears to be not a स्थानांगसूत्र (२)
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Sthaananga Sutra (2)
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