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प्रथम उद्देशक FIRST LESSON
द्विपदावतार - पद DVIPADAVATAR-PAD (SEGMENT OF TWO CATEGORIES )
१. जदत्थि णं लोगे तं सव्वं दुपओआरं, तं जहा - जीवच्चेव अजीवच्चेव । तसच्चेव, थावरच्चेव । सजोणियच्चेव, अजोणियच्चेव । साउयच्चेव, अणआउयच्चेव । सइंदियच्चेव, अनिंदियच्चेव । सवेयगा चेय, अवेयगा चेव । सपोग्गला चेव, अपोग्गला चेव । संसारसमावण्णगा चेव, असंसारसमावण्णगा चेव । सासया चेव, असासया चेव । आगासे चेव, णोआगासे चेव । धम्मे चेव, अधम्मे चेव । बंधे चेव, मोक्खे चेव । पुण्णे चेव, पावे चेव । आसवे चेव, संवरे चैव । वेयणा चेव, णिज्जरा चेव ।
द्वितीय स्थान SECOND STHAAN (Place Number Two)
१. लोक में जो कुछ हैं, वह सब दो-दो पदों में अवतरित ( समाविष्ट) होता है । यथा-जीव और अजीव । त्रस और स्थावर । सयोनिक और अयोनिक । आयुसहित और आयुरहित । इन्द्रियसहित और इन्द्रियरहित । वेदसहित और वेदरहित। पुद्गलसहित और पुद्गलरहित । संसारसमापन्न और असंसारसमापन्न। शाश्वत और अशाश्वत । आकाश और नोआकाश । धर्म और अधर्म । बन्ध और मोक्ष | पुण्य और पाप । आस्रव और संवर। वेदना और निर्जरा ।
1. Whatever there is in this Lok ( occupied space) falls in two categories, for example-jiva (living or soul) and ajiva (non-living or matter). Tras (mobile) and sthavar (immobile). Sayonik (with a place of birth) and ayonik (without a place of birth). Sa-ayu (with a defined life-span) and anayu (without a defined life-span). Sa-indriya (with sense organs) and anindriya (without sense organs). Sa-veda (with sexual desire) and aveda (without sexual desire). Sa - pudgala ( with matter) and apudgala (without matter). Samsarasamapanna (entrapped in cycles of rebirth) and asamsarasamapanna (liberated from cycles of rebirth). Shashvat (permanent or eternal) and ashashvat (transitory ). Aakash (space) and noaakash (other than space). Dharma (entity of motion) and adharma (entity of inertia ). Bandh (bondage) and moksha ( liberation). Punya (merit) and paap (demerit ). Asrava ( inflow) and samvar (blockage of inflow). Vedana (suffering caused by karmas) and nirjara (shedding of karmas).
विवेचन - संसार के सभी पदार्थ दो राशि समूहों में विभक्त हैं- जीव और अजीव । तीसरी कोई राशि नहीं है। भारत के वेदान्तानुयायी अनेक दार्शनिक केवल जीव द्रव्य को ही मानते थे - एकमेवाद्वितीयं ब्रह्म
द्वितीय स्थान
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Second Sthaan
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