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卐 no existence'. (3) A positive statement disproving a point, such as
"There is non-existence'. (4) A negative statement disproving a point, such as-"There is no non-existence'.
विवेचन-सूत्र ४९९ से ५०४ तक सूत्रों में न्यायशास्त्र में आये दृष्टान्त तथा हेतु आदि का वर्णन है। इस विषय को बिना व्याख्या एवं उदाहरण के समझना कठिन है। टीकाकार ने अनेक उदाहरण व 卐 दृष्टान्त देकर विस्तारपूर्वक समझाया है। उसके सारांश रूप में यहाँ कुछ विवेचन प्रस्तुत हैं___ 'ज्ञात' शब्द का अर्थ दृष्टान्त, आख्यानक अथवा कथानक भी होता है। उसके मुख्यतया दो भेद हैंचरित और कल्पित। 'ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती की तरह निदान दु:ख के लिए ही होता है', यह चरित-दृष्टान्त
है। प्रमादी जीवों को यौवन आदि की अनित्यता दिखाने के लिए 'किसलय' और 'जीर्णपत्र' का संवाद फ़ कल्पित दृष्टान्त है। ॐ जैसे कि टूटकर गिरते हुए जीर्णपत्र का परिहास करती हुई कोंपलें बोलीं- “देखा, हम आए और
तुम चले'', इस व्यंग्य का उत्तर देता हुआ पत्ता बोला-"जैसे तुम हो, कभी हम भी ऐसे ही थे, जैसे हम ऊ हैं वैसे कभी तुम भी हो जाओगे।" इस प्रकार गिरते हुए जीर्णपत्र ने किसलयों को शिक्षा दी, अतः # यौवन आदि पर कभी भी अहंभाव नहीं करना चाहिए। इस प्रकार के दृष्टान्त कल्पित कहलाते हैं।
____ 'ज्ञात' के मूल भेद चार हैं जैसे कि आहरण, आहरणतद्देश, आहरणतद्दोष और उपन्यासोपनय। है इनमें से प्रत्येक के चार-चार भेद होते हैं। इस प्रकार 'ज्ञात' के कुल सोलह भेद होते हैं। सर्वप्रथम + आहरण और उसके चार उपभेदों का विवेचन किया जाता है
१. आहरण-अप्रसिद्ध अर्थ को प्रसिद्धि में लाने या अप्रतीत अर्थ की प्रतीति करवाने को ‘आहरण' (दृष्टान्त) कहा जाता है। जैसे-पाप दुःख का कारण होता है, जैसे-महाराज ब्रह्मदत्त। आहरण के मूल भेद चार हैं
(क) अपाय-अपाय का अर्थ है-अनर्थ या दुःख। इस संसार के सभी पदार्थ प्रायः अनर्थों के कारण 卐 हैं, इस विषय का विवेचन द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से किया जाता है। द्रव्य से अनर्थ
होता है या द्रव्य के लिए अनर्थ होता है। इसी के कारण ही प्रिय सम्बन्धियों का नाश हो जाता है। जैसेम. कूणिक और चेटक राजा का घोर संग्राम सिंचानक हाथी और हार के लिए ही हुआ था। सभी प्रकार के
दुर्व्यसनों का आरम्भ द्रव्य से ही होता है, अतः आसक्तिपूर्वक द्रव्य स्वयं अपाय-दुःख एवं अनर्थ का
मूल कारण है। यह द्रव्यापाय कहलाता है। ____ जो क्षेत्र भय का कारण है, जिस क्षेत्र में शत्रु, जल, अग्नि, चोर, रोग, युद्ध, अराजकता और
अप्रतिष्ठा इत्यादि का भय है उसका परित्याग कर देना चाहिए। जैसे-प्रतिवासुदेव जरासंध के भय से यादवों ने मथुरा नगरी का परित्याग कर द्वारिका नगरी का निर्माण किया। अथवा जिस स्थान या घर में । सर्प एवं व्यंतर आदि देवों का भय हो। यह क्षेत्रापाय कहलाता है।
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| स्थानांगसूत्र (१)
(584)
Sthaananga Sutra (1) 355555555555555555555555555555555558
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