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493. This whole Lok ( universe) is sprisht (pervaded) by four astikayas ( eternal agglomerative entities ) – ( 1 ) Dharmastikaya (motion entity),
5 (2) Adharmastikaya ( inertia entity ), ( 3 ) Akashastikaya (space entity), and (4) Pudgalastikaya (matter entity).
४९४. चउहिं बादरकाएहिं उववज्जमाणेहिं लोगे फुडे पण्णत्ते, तं जहा - पुढविकाइएहिं, आउकाइएहिं, वाउकाइएहिं, वणस्सइकाइएहिं ।
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४९४. निरन्तर उत्पन्न होने वाले चार अपर्याप्तक बादरकायिक जीवों के द्वारा यह सर्वलोक स्पृष्टपरिव्याप्त है - ( 9 ) बादर पृथ्वीकायिक जीवों से, (२) बादर अप्कायिक जीवों से, (३) बादर वायुकायिक जीवों से, (४) बादर वनस्पतिकायिक जीवों से ।
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विवेचन - इस सूत्र में बादर तेजस्कायिक जीवों का नामोल्लेख नहीं करने का कारण यह है कि वे सर्व लोक में नहीं पाये जाते हैं, यद्यपि सूक्ष्म तेजस्कायिक जीव सर्व लोक में व्याप्त हैं, किन्तु 'बादरकाय'
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5 का सद्भाव केवल मनुष्य क्षेत्र में ही पाया जाता है । बादर पृथ्वीकायिकादि चारों काया के जीव निरन्तर
मरते रहते हैं और उत्पन्न होते रहते हैं ।
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494. This whole Lok ( universe) is sprisht (pervaded ) by four continuously producing aparyaptak badar-kayik jivas (inchoate grossbodied beings)-(1) badar prithvi-kayik jivas (gross earth-bodied beings), (2) badar ap-kayik jivas (gross water-bodied beings), (3) badar vayukayik jivas (gross air-bodied beings), and (4) badar vanaspati-kayik jivas (gross plant-bodied beings).
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Elaboration-The reason for excluding tejas-kayik jivas (fire-bodied
beings) from this list is that they do not exist everywhere in the universe. Although minute fire-bodied beings pervade the whole 卐 universe, the gross fire-bodied beings exist only in the land of humans.
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卐 The four gross bodied beings including earth-bodied ones continuously
die and get reborn.
तुल्य- प्रदेश - पद TULYA PRADESH-PAD (SEGMENT OF EQUAL SPACE-POINTS)
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४९५. चउहिं पएसग्गेणं तुल्ला पण्णत्ता, तं जहा - धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, लोगागासे,
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5 एगजीवे ।
४९५. प्रदेशाग्र-प्रदेशों के परिमाण की अपेक्षा से चार अस्तिकाय द्रव्य समान हैं - ( १ ) धर्मास्तिकाय, (२) अधर्मास्तिकाय, (३) लोकाकाश, (४) एक जीव ।
स्थानांगसूत्र (१)
(578)
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Sthaananga Sutra (1)
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