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sharira (transmutable body ), ( 3 ) aharak sharira (telemigratory body),
5 and (4) taijas sharira ( fiery body).
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विवेचन - शरीर पाँच प्रकार के बताये हैं-औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण। इनमें
औदारिक शरीर को छोड़कर शेष चार शरीर को 'जीव-स्पृष्ट' कहा है। वैक्रिय आदि चार शरीरों को
5 में से किसी एक, दो या तीन के साथ सम्मिश्र या संयुक्त ही मिलेगा ।
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जीव-२ - स्पृष्ट कहने का अभिप्राय यह है कि ये चारों शरीर सदा जीव से व्याप्त ही मिलेंगे। जीव से रहित
वैक्रिय आदि शरीरों की सत्ता कभी सम्भव नहीं है अर्थात् जीव द्वारा त्यक्त वैक्रिय आदि शरीर पृथक्
रूप से कभी नहीं मिलेंगे। जीव के बहिर्गमन करते ही वैक्रिय आदि शरीरों के पुद्गल - परमाणु तत्काल
बिखर जाते हैं, उनका कोई चिन्ह शेष नहीं रहता । किन्तु औदारिकशरीर की स्थिति उक्त चारों शरीरों
से भिन्न है। औदारिकशरीर जीव के त्याग देने पर भी हाड़-माँस बचा रहता है।
चार शरीरों को कार्मणशरीर से संयुक्त कहने का अर्थ यह है कि अकेला कार्मणशरीर कभी नहीं
पाया जाता है। जब भी और जिस किसी भी गति में वह मिलेगा, तब वह औदारिक आदि चार शरीरों
Elaboration-There are five bodies-audarik sharira (gross physical body), vaikriya sharira (transmutable body), aharak sharira (telemigratory body), taijas sharira ( fiery body) and karman sharira (karmic body). Out of these, except gross physical body, the remaining four are said to be jiva-sprisht (soul-linked). This is because all these four bodies are always found linked with soul. Existence of these four bodies including vaikriya independent of soul is never possible. In other words any of these four bodies left by soul have no existence. With the exit of soul the subtle constituent particles at once disintegrate leaving no sign. Audarik sharira is different than these because even when the soul abandons, it remains in the form of flesh and bones.
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The statement that karman sharira is united with four bodies conveys that it has no independent existence. Whenever and wherever it
is found it is always found united with one, two or three of the other four
kinds of bodies.
स्पृष्ट- पद SPRISHT-PAD (SEGMENT OF PERVASION)
४९३. चउहिं अत्थिकाएहिं लोगे फुडे पण्णत्ते, तं जहा - धम्मत्थिकाएणं, अधम्मत्थिक. एणं, जीवत्थिकाएणं, पुग्गलत्थिकाएणं ।
४९३. यह समूचा लोक चार अस्तिकायों से स्पृष्ट (व्याप्त) है- (१) धर्मास्तिकाय से,
(२) अधर्मास्तिकाय से, (३) जीवास्तिकाय से, और (४) पुद्गलास्तिकाय से।
चतुर्थ स्थान
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Fourth Sthaan
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