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विवेचन-टीकाकार के अनुसार 'इहास्थ' का एक अर्थ इस लोक सम्बन्धी कार्यों में जिसकी आस्था है, वह और जिसकी परलोक सम्बन्धी कार्यों में आस्था है, वह 'परास्थ' पुरुष है। इस अर्थ के अनुसार 9 भी चार भंग होते हैं।
Elaboration-According to the commentator (Tika) another meaning of ihattha is ihasth or one who has faith only in this world. Parattha means parasth or one who has faith only in the next life. With this meaning also the four alternatives remain unchanged.
हानि-वृद्धि-पद HAANI-VRIDDHI-PAD (SEGMENT OF LOSS AND GAIN) ॐ ४६७. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-एगेणं णाममेगे वडति एगेणं हायति, एगेणं + णाममेगे वडति दोहिं हायति, दोहिं णाममेगे वडति एगेणं हायति, दोहिं णाममेगे वडति दोहिं म हायति।
४६७. पुरुष चार प्रकार के होते हैं-(१) एक से बढ़ने वाला, एक से हीन होने वाला [कोई पुरुष + एक श्रुत-शास्त्राभ्यास में बढ़ता है और एक-सम्यग्दर्शन से हीन होता है]। (२) एक से बढ़ने वाला, दो
से हीन होने वाला [कोई एक शास्त्राभ्यास से बढ़ता है, किन्तु सम्यग्दर्शन और विनय से हीन होता है। 卐 (३) दो से बढ़ने वाला, एक से हीन होने वाला [कोई शास्त्राभ्यास और चारित्र इन दो से बढ़ता है और + एक सम्यग्दर्शन से हीन होता है]। (४) कोई दो से बढ़ने वाला, दो से हीन होने वाला [कोई ॐ शास्त्राभ्यास और चारित्र इन दो से बढ़ता है और सम्यग्दर्शन एवं विनय इन दो से हीन होता है।
___47. Purush (men) are of four kinds (Some person) (1) Gains in one and loses in one (some person gains in terms of shrut or study of scriptures and looses in terms of right perception/faith). (2) Gains in one and loses in two (some person gains in terms of shrut or study of scriptures and looses in terms of right perception/faith as well as modesty). (3) Gains in two and loses in one (some person gains in terms of study of scriptures as well as right conduct and looses in terms of right perception/faith). (4) Gains in two and loses in two (some person gains in terms of study of scriptures as well as right conduct and looses in terms of right perception/faith as well as modesty).
विवेचन-'एक' और 'दो' इन सामान्य पदों के आधार से उक्त व्याख्या के अतिरिक्त और भी अनेक प्रकार से व्याख्या की जाती है, जैसे
(१) कोई एक ज्ञान से बढ़ता है और एक राग से हीन होता है। (२) कोई एक ज्ञान से बढ़ता है ॐ और राग-द्वेष इन दो से हीन होता है। (३) कोई ज्ञान और संयम इन दो से बढ़ता है और एक राग से
स्थानांगसूत्र (१)
(560)
Sthaananga Sutra (1)
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