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आचार्य भी चार प्रकार के होते हैं - (१) कोई आचार्य (वाणी और व्यवहार में) आँवले फल के फ्र समान अल्प मधुर होते हैं, (२) कोई दाख के फल के समान अधिक मधुर, (३) कोई दूध (खीर) के
समान अधिकतर मधुर होते हैं, और (४) कोई खांड (मिश्री) के समान बहुत अधिक मधुर होते हैं।
फ्र
410. (21) Purush (men) are of four kinds – ( 1 ) Some man is sheel फ्र sampanna (endowed with good character) and not chaaritra sampanna 卐 (endowed with pious conduct). (2) Some man is chaaritra sampanna and not shrut sampanna. (3) Some man is both shrut sampanna and chaaritra sampanna. (4) Some man is neither shrut sampanna nor chaaritra sampanna.
आचार्य -
- फल- पद ACHARYA PHAL-PAD (SEGMENT OF ACHARYA AND FRUIT)
४११. चत्तारि फला पण्णत्ता, तं जहा- आमलगमहुरे, मुद्दियामहुरे, खीरमहुरे, खंडमहुरे । एवामेव चत्तारि आयरिया पण्णत्ता, तं जहा - आमलगमहुरफलसमाणे,
जाव
[ मुद्दियामहुरफलसमाणे, खीरमहुरफलसमाणे ] खंडमहुरफलसमाणे ।
411. Phal (fruits) are of four kinds-(1) sweet like amla (hog-plum;
5 Emblica officinalis ), ( 2 ) sweet like draksha (grapes), (3) sweet like dudha 5 (milk), and (4) sweet like khaand (sugar).
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४११. चार प्रकार के फल होते हैं - (१) आँवले के समान मधुर, (२) द्राक्षा के समान मधुर, (३) दूध के समान मधुर, तथा (४) खांड - शक्कर के समान मधुर ।
5 is sweet like draksha (grapes ), ( 3 ) some is very sweet like dudha (milk), hand (4) some is very very sweet like bhaand (sugar).
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5 वैयावृत्य - पद VAIYAVRITYA-PAD (SEGMENT OF SERVICE)
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४१२. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - आतवेयावच्चकरे णाममेगे णो परवेयावच्चकरे,
5 परवेयावच्चकरे णाममेगे जो आतवेयावच्चकरे, एगे आतवेयावच्चकरेवि परवेयावच्चकरेवि, एगे णो आतवेयावच्चकरे णो परवेयावच्चकरे ।
Acharyas (preceptors) are also of four kinds-(1) some acharya is slightly sweet (in speech and behaviour) like amla (hog-plum), (2) some
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चतुर्थ स्थान
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४१२. पुरुष चार प्रकार के होते हैं- (१) कोई अपनी वैयावृत्य करता है, किन्तु दूसरों की
नहीं करता ( - एकलविहारी); (२) कोई दूसरों की वैयावृत्य करता है, किन्तु अपनी नहीं करता
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(- अभिग्रहधारी); (३) कोई अपनी भी वैयावृत्य करता है और दूसरों की भी ( - स्थविरकल्पी); तथा 5 (४) कोई न अपनी और न दूसरों की ही वैयावृत्य करता है (-जिनकल्पी) ।
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412. Purush (men) are of four kinds - ( 1 ) some man serves himself but 5 not others (ekal vihari or ascetic living alone ), ( 2 ) some man serves 5
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(521)
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Fourth Sthaan 5
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