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Elaboration-Arihant is extremely strong. Forgiveness is his intrinsic nature. An ascetic is accomplished in austerities and he performs rigorous austerities for inner purity. Vaishraman, the god of wealth,
gives wealth without any obligation or desire of reciprocation. Vasudeva 4. conducts a war inspired by morality and conducted morally. His wars are
called dharma-yuddha (just war). (Hindi Tika, p. 896) ॐ उच्च-नीच-पद UCHCH-NEECH-PAD (SEGMENT OF HIGH AND LOW)
३६८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-उच्चे णाममेगे उच्चच्छंदे, उच्चे णाममेगे + णीयच्छंदे, णीए णाममेगे उच्चच्छंदे, पीए णाममेगे णीयच्छंदे।
३६८. पुरुष चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई पुरुष कुल, वैभव आदि से उच्च होता है और 卐 उच्च-विचार आदि से भी उच्च होता है; (२) कोई कुल आदि से उच्च होता है, किन्तु विचारों से नीच;
(३) कोई जाति-कुलादि से नीच, किन्तु विचारों से उच्च; और (४) कोई जाति-कुलादि से भी नीच
और विचार आदि से भी नीच होता है। ____368. Purush (men) are of four kinds-(1) some man is high or noble in terms of family and wealth and also lofty in thoughts, (2) some man is
high in terms of family and wealth but lowly or mean in thoughts, 4 (3) some man is lowly in terms of family and wealth but lofty in
thoughts, and (4) some man is lowly in terms of family and wealth and also lowly in thoughts. लेश्या-पद LESHYA-PAD (SEGMENT OF COMPLEXION OF SOUL)
३६९. असुरकुमाराणं चत्तारि लेसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-कण्हलेसा, णीललेसा, काउलेसा, तेउलेसा।
३७०. एवं जाब थणियकुमाराणं। एवं-पुढविकाइयाणं आउ-वणस्सइकाइयाणं ॐ वाणमंतराणं-सव्वेसिं जहा असुरकुमाराणं।
३६९. असुरकुमारों में चार लेश्याएँ होती हैं-(१) कृष्णलेश्या, (२) नीललेश्या, (३) कापोतलेश्या, 卐 और (४) तेजोलेश्या। ॐ ३७०. इसी प्रकार स्तनितकुमारों के, तथा पृथ्विीकायिक, अप्कायिक, वनस्पतिकायिक जीवों के 5 और वाणव्यन्तर देवों के, इन सबके असुरकुमारों के समान चार-चार लेश्याएँ होती हैं।
369. Asura Kumars have four leshyas (complexion of soul)9 (1) krishna leshya (black complexion of soul), (2) neel leshya (blue 卐 complexion of soul), (3) kapot leshya (pigeon complexion of soul), and 5 (4) tejo leshya (fiery complexion of soul). 卐स्थानांगसूत्र (१)
(498)
Sthaananga Sutra (1)
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