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प्रथम स्थान FIRST STHAAN (Place Number One)
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१. सुयं मे आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं१. आयुष्मन् ! मैंने सुना है-“उन भगवान ने ऐसा कहा है-" 1. Long lived one! I have heard—“That Bhagavan has said thus—” विवेचन-भगवान महावीर के पाँचवें गणधर श्री सुधर्मास्वामी अपने प्रधान शिष्य जम्बू अणगार को सम्बोधित करते हुए कहते हैं-"आयुष्मन् ! मैंने स्वयं सुना है कि उन भगवान महावीर ने तीसरे अंग, के स्थानांगसूत्र का भाव इस प्रकार से प्रतिपादन किया है।" ___Elaboration-Sudharma Swami, the fifth Ganadhar (principal disciple) of Bhagavan Mahavir, says to his chief disciple ascetic Jambu"Long lived one ! I have heard myself that Bhagavan Mahavir has propagated the text and meaning of Sthaananga Sutra, the third Anga
as follows-" के अस्तित्व-पद ASTITVA-PAD (SEGMENT OF EXISTENCE)
२. एगे आया। २. आत्मा एक है। 2. Atma (soul) is one.
विवेचन-'एगे आया' सूत्र का प्रतिपादन आत्मा के चैतन्य स्वभाव को मुख्य मानकर किया गया है। 卐 चेतना की दृष्टि से संसार की समस्त आत्माएँ समान हैं। प्रत्येक आत्मा को दुःख अप्रिय तथा सुख प्रिय
हैं। यह स्वभाव की समानता है। इसी प्रकार प्रत्येक आत्मा चेतना की दृष्टि से समान है। इस समानता को के मुख्य मानकर 'आत्मा एक है' यह कथन है। ____ अन्य आगमों में ‘आत्मा अनन्त है' ऐसा भी कहा गया है-अणंताणि य दव्वाणि कालो पोग्गल जंतवो। (उत्तरा. २८/८) काल, पुद्गल और जीव द्रव्य संख्या में अनन्त हैं।
क्योंकि प्रत्येक आत्मा असंख्यातप्रदेशी है, सब आत्माएँ स्वतन्त्र हैं और सबका कर्म तथा कर्मफल ॐ पृथक्-पृथक् है। इसलिए आत्माएँ अनन्त हैं, यह कथन भी युक्ति-संगत है। कथन की इस शैली में संग्रहनय तथा व्यवहारनय की दृष्टि का अन्तर ध्यान में रखना चाहिए।
उपनिषदों में ‘आत्मा की एकता' का प्रतिपादन है-एको देवः सर्वभूतेषु गूढ़ः-(श्वेताश्वतर. ६/११)। किन्तु उपनिषद का 'अद्वैतवाद' संख्या की दृष्टि है। उसके अनुसार समस्त जीवों में एक ही आत्मा ॐ (परमात्मा) का प्रतिबिम्ब झलकता है। जबकि जैन दृष्टि से प्रत्येक आत्मा स्वतंत्र है, किन्तु सबमें चेतना के
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स्थानांगसूत्र (१)
(6)
Sthaananga Sutra (1)
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