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8hhhh5555%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%%% ॐ विवेचन-सूत्र २६३ से लेकर २७२ तक के १० सूत्रों में कर्मों की अनेक अवस्थाओं का निरूपण है।
इसमें से (२) उदय और (३) सत्ता को छोड़कर शेष आठ की 'करण' संज्ञा है। क्योंकि उनके सम्पादन
के लिए जीव को अपनी योग-वीर्य-शक्ति का विशेष उपक्रम (उद्यम) करना पड़ता है। दस अवस्थाओं 卐 का स्वरूप इस प्रकार है
(१) बन्ध-जीव और कर्म-पुद्गलों का गाढ़ संयोग। (२) उदय-बँधे हुए कर्म-पुद्गलों को ऊ यथासमय फल देना। (३) सत्ता-बँधे कर्मों का जीव के उदय में आने तक अवस्थित रहना अनुदय
अवस्था है। (४) उदीरणा-बँधे कर्मों को उदयकाल आने के पूर्व ही अपवर्तन करके उदय में लाना। 4 (५) उद्वर्तना-बँधे कर्मों की स्थिति और अनुभाव-शक्ति को बढ़ाना। (६) अपवर्तना-बँधे कर्मों की स्थिति है और अनुभाव-शक्ति को घटाना। (७) संक्रम-एक कर्म-प्रकृति के सजातीय दूसरी प्रकृति में परिणमन - होना। (८) उपशम-मोह कर्म को उदय-उदीरणा के अयोग्य करना। (९) निधत्ति-बँधे हुए जिस कर्म को ॐ उदय में भी न लाया जा सके और उद्वर्तन, अपवर्तन एवं संक्रम भी न किया जा सके, ऐसी अवस्था
विशेष। (१०) निकाचित-बँधे हुए जिस कर्म का उपशम, उदीरणा, उद्वर्तना, अपवर्तना और संक्रम * आदि कुछ भी न किया जा सके, ऐसी अवस्था-विशेष।
उक्त दशों ही प्रकृति, स्थिति, अनुभाव और प्रदेश के भेद से चार-चार प्रकार के होते हैं। उनमें से बन्ध, उदीरणा, उपशम, संक्रम, निधत्त और निकाचित के चार-चार भेदों का वर्णन सूत्रों में किया ही 卐 है। शेष उद्वर्तना और अपवर्तना का समावेश विपरिणामनोपक्रम में है।
विपरिणमन-कर्म-पुद्गलों के क्षय, क्षयोपशम, उद्वर्तना, अपवर्तना आदि के द्वारा नई-नई अवस्थाएँ 卐 उत्पन्न करना।
Elaboration—Various states of karmas have been defined in the Si aforesaid ten aphorisms from 263 to 272. Besides udaya (2) and satta
(3) the remaining eight states are called 'karan' (instrument or means). This is because in order to attain these states a soul has to make special efforts by means of yoga (association), virya (potency) and shakti (power). Brief definitions of these ten states are as follows
(1) Bandh (bondage)-intimate association or fusion of soul and karma particles. (2) Udaya (fructification)-natural fructification of karma particles in due course in the form of suffering. (3) Satta (latent state)-latent state of acquired karmas before their fructification. This is non-fructified state. (4) Udirana (fructify). to cause fructification of acquired karmas by reducing their potency in advance of their natural fruition. (5) Udvartana (enhancement)-enhancement of the duration and potency of acquired karmas. (6) Apavartana (reduction)-reduction of the duration and potency of acquired karmas. (7) Sankram (transformation)-qualitative transformation of one species of karma to
स्थानांगसूत्र (१)
(458)
Sthaananga Sutra (1)
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