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5 दोष-प्रतिषेवि - पद DOSH - PRATISEVI-PAD (SEGMENT OF THE ERRANT)
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२७९. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा - संपागडपडिसेवी णाममेगे, पच्छण्णपडिसेवी णाममेगे, पडुप्पण्णणंदी णाममेगे, णिस्सरणणंदी णाममेगे ।
२७९. चार प्रकार के पुरुष होते हैं - ( १ ) सम्प्रकटप्रतिसेवी - कोई पुरुष प्रकट में सबके समक्ष अथवा जान-बूझकर दर्प से दोष सेवन करता है, (२) प्रच्छन्नप्रतिसेवी- कोई छिपकर दोष सेवन करता है, (३) प्रत्युत्पन्नप्रतिनन्दी - कोई वर्तमान काल के सुख, सन्मान के लोभ से दोष सेवन करके आनन्दानुभव करता है, और (४) निःसरणानन्दी - कोई - ( स्वच्छन्दाचारी) दूसरों के चले जाने पर (गच्छ से किसी साधु या शिष्य आदि के निकल जाने पर) प्रसन्न होता है।
279. Purush (men) are of four kinds-(1) samprakat-pratisevi-some person commits faults before everyone or knowingly and with pride, (2) prachchhanna-pratisevi-some person commits fault furtively, (3) pratyutpanna-pratinandi— some person enjoys committing fault with a f desire for happiness and honour during this life, and (4) nihsarananandi— some person of loose conduct is happy when some other person goes away Fi (some ascetic or disciple is expelled from the group).
5 जय-पराजय- पद JAYA-PARAJAYA-PAD (SEGMENT OF VICTORY AND DEFEAT)
२८०. चत्तारि सेणाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - जइत्ता णाममेगा णो पराजिणित्ता, पराजिणित्ता णाममेगा णो जइत्ता, एगा जइत्तावि पराजिणित्तावि, एगा णो जइत्ता णो पराजिणित्ता ।
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- जइत्ता णाममेगे णो पराजिणित्ता, पराजिणित्ता णामगे णो जइत्ता, एगे जइत्तावि पराजिणित्तावि, एगे णो जइत्ता णो पराजिणित्ता ।
२८०. सेनाएँ चार प्रकार की होती हैं - (१) कोई सेना विजयी होती है, किन्तु पराजित नहीं होती; (२) कोई सेना पराजित होती है, किन्तु विजयी नहीं होती; (३) कोई सेना कभी जीतती है और कभी पराजित भी होती है; और (४) कोई सेना न जीतती है और न पराजित ही होती है।
280. Sena (army) is of four kinds-(1) some army is victorious and never gets defeated, (2) some army gets defeated and is never victorious, (3) some army is victorious sometimes and gets defeated sometimes, and (4) some army is neither victorious nor gets defeated.
चतुर्थ स्थान
इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते हैं - (१) कोई साधु परीषहादि को जीतता है, किन्तु उनसे पराजित नहीं होता । जैसे - भगवान महावीर । (२) कोई परीषहादि से पराजित होता है, किन्तु उनको 5 जीत नहीं पाता । जैसे- कुण्डरीक । (३) कोई परीषहादि को कभी जीतता है और कभी उनसे पराजित भी होता है। जैसे- शैलक राजर्षि या मेघ मुनि । (४) कोई परीषहादि को न जीतता और न पराजित ही होता है । जैसे- जिसको कभी परीषह उत्पन्न ही नहीं हुआ हो ऐसा नवदीक्षित मुनि ।
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Fourth Sthaan
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