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२६२. चार प्रकार के पुरुष होते हैं-(१) कुछ पुरुष अपने आपको खिन्न (संतप्त) करते हैं, किन्तु + दूसरे को नहीं; (२) कुछ दूसरे को खिन्न करते हैं, किन्तु अपने को नहीं; (३) कुछ अपने आपको भी खिन्न करते हैं तथा दूसरे को भी; और (४) कुछ न तो अपने को खिन्न करते हैं और न ही दूसरे को। म __[प्रथम भंग में सहिष्णु या दुर्बल व्यक्ति, दूसरे में स्वार्थी या सबल, तीसरे में कलहप्रिय और चौथे भंग में शान्त आत्मा का उदाहरण समझना चाहिए।]
२६३. चार प्रकार के पुरुष होते हैं-(१) कुछ पुरुष अपना दमन करते हैं, किन्तु दूसरे का नहीं; (२) कुछ दूसरे का दमन करते हैं, किन्तु अपना नहीं; (३) कुछ अपना भी दमन करते हैं और दूसरे का भी; और (४) कुछ न अपना दमन करते हैं और न दूसरों का।
262. (1) Some man troubles himself but not others. (2) Some man troubles others but not himself. (3) Some man troubles himself as well as others. (4) Some man neither troubles himself nor others.
(Examples of these are—a tolerant or weak person, selfish or strong person, quarrelsome person, and serene person respectively.)
263. (1) Some man subjugates (daman) himself but not others. (2) Some man subjugates others but not himself. 3) Some man subjugates himself as well as others. (4) Some man neither subjugates himself nor others.
विवेचन-दमन के अनेक अर्थ हैं। इन्द्रियों को वश में करना, मन व वासना का दमन करना, किसी को दण्ड देना, किसी पर अनुशासन करना आदि। यहाँ प्रथम भंग में संयमी पुरुष, जिनकल्पी आदि; दूसरे भंग में अध्यापक या राजपुरुष आदि; तीसरे भंग में आचार्य आदि तथा चौथे भंग में स्वच्छन्दाचारी का उदाहरण समझना चाहिए।
Elaboration - The word daman has many meanings. To control senses, to supress desires and lust, to punish some one, to discipline someone etc. Examples of these are—a disciplined person like a jinakalpi ascetic, teacher or administrator, acharya and an indisciplined person respectively. 7ef-GARHA-PAD (SEGMENT OF REPROACH)
२६४. चउबिहा गरहा पण्णत्ता, तं जहा-उवसंपज्जामित्तेगा गरहा, वितिगिच्छामित्तेगा गरहा, जंकिंचिमिच्छामित्तेगा गरहा, एवंपि पण्णत्तेगा गरहा।
२६४. गर्दा चार प्रकार की है-(१) उपसम्पदारूप गर्दा-अपने दोषों का निवेदन करने के लिए गुरु के समीप जाऊँ, ऐसा विचार करना। (२) विचिकित्सारूप गर्दा-अपने निन्दनीय दोषों का निराकरण करूँ, ऐसा विचार करना। (३) मिच्छामिरूप गर्हा-जो कुछ मैंने असद् आचरण किया है, वह मेरा कार्य मिथ्या हो ऐसा कहना, और (४) एवमपि प्रज्ञत्तिरूप गर्दा-भगवान ने ऐसा कहा है कि अपने दोष की गर्दा (निन्दा) करने से भी किये गये दोष की शुद्धि होती है, ऐसा विचार करना।
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चतुर्थ स्थान
(437)
Fourth Sthaan
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