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5 for prescribed, acceptable, to be collected in small portions and 4 begged alms.
For these four reasons male and female ascetics about to attain miraculous jnana and darshan at once do that. स्वाध्याय-पद SVADHYAYA-PAD (SEGMENT OF STUDY)
२५६. णो कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा चउहिं महापाडिवएहिं सज्झायं करेत्तए, तं जहा-आसाढपाडिवए, इंदमहपाडिवए, कत्तियपाडिवए, सुगिम्हगपाडिवए।
२५६. निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों को चार महाप्रतिपदाओं में स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। जैसे(१) आषाढ़-प्रतिपदा-आषाढ़ी पूर्णिमा के पश्चात् आने वाली सावन की प्रतिपदा, (२) इन्द्रमह卐 प्रतिपदा-आसोज मास की पूर्णिमा के पश्चात् आने वाली कार्तिक की प्रतिपदा, (३) कार्तिक-प्रतिपदा
कार्तिक पूर्णिमा के पश्चात् आने वाली मगसिर की प्रतिपदा, और (४) सुग्रीष्म-प्रतिपदा-चैत्री पूर्णिमा के के पश्चात् आने वाली वैशाख की प्रतिपदा।
256. Nirgranth and nirgranthi (male and female ascetics) should not study on four Mahapratipadas--(1) Ashadh pratipada—first day of the month of Savan or the fortnight following the full moon night of the __month of Ashadh, (2) Indramaha pratipada-first day of the month of Kartik or the fortnight following the full moon night of the month of $ Asoja, (3) Kartik pratipada—first day of the month of Mangsir or the $ fortnight following the full moon night of the month of Kartik, and
(4) Sugrishma pratipada-first day of the month of Vaihsakh or the 4 fortnight following the full moon night of the month of Chaitra.
विवेचन-किसी महोत्सव के पश्चात् आने वाली प्रतिपदा महाप्रतिपदा कही जाती है। भगवान म महावीर के समय इन्द्रमह, स्कन्दमह, यक्षमह और भूतमह; ये चार महोत्सव जन-साधारण में प्रचलित
थे। निशीथभाष्य के अनुसार आषाढ़ी पूर्णिमा को इन्द्रमह, आश्विनी पूर्णिमा को स्कन्दमह, कार्तिकी ॐ पूर्णिमा को यक्षमह और चैत्री पूर्णिमा को भूतमह मनाया जाता था। इन उत्सवों में सम्मिलित लोग अपनी ॐ परम्परा के अनुसार इन्द्रादि की पूजादि करते थे। उत्सव के दूसरे दिन प्रतिपदा को अपने मित्रादिकों को बुलाते और सब मिलकर मद्यपान व भोजनादि करते-कराते थे।
इन महाप्रतिपदाओं के दिन स्वाध्याय-निषेध के अनेक कारणों में से एक प्रधान कारण यह बताया गया है कि महोत्सव में सम्मिलित लोग समीपवर्ती साधु और साध्वियों को स्वाध्याय करते या ॐ शास्त्र-वाचनादि करते हुए देखकर भड़क सकते हैं और नशा आदि करके उपद्रव भी कर सकते हैं। * अतः यही उचित माना गया कि उस दिन साधु-साध्वी मौनपूर्वक स्थान पर ही अपने धर्म-कार्यों को
सम्पन्न करें। दूसरा कारण यह भी बताया गया है कि जहाँ समीप में जन-साधारण का शोरगुल हो रहा 5 हो, वहाँ पर साधु-साध्वी एकाग्रतापूर्वक शास्त्र की शब्द या अर्थवाचना को ग्रहण भी नहीं कर सकते है
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स्थानांगसूत्र (१)
(43)
Sthaananga Sutra (1)
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