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doctrines and then state wrong principles of other doctrines. (4) To state 4 wrong principles of other doctrines and then enumerate correct doctrine.
२४९. (३) संवेयणी कहा चउबिहा पण्णत्ता, तं जहा-इहलोगसंवेयणी, परलोगसंवेयणी, आत-सरीरसंवेयणी, पर-सरीरसंवेयणी। ॐ २४९. (३) संवेगनी कथा चार प्रकार की है। जैसे-(१) इस लोक-सम्बन्धी असारता, अनित्यता का
निरूपण करना। (२) परलोक-सम्बन्धी (देव-तिर्यंच गति) असारता आदि का निरूपण करना। (३) अपने शरीर की अशुचिता का निरूपण करना। (४) दूसरों के शरीरों की अशुचिता का निरूपण करना।
249. (3) Samvedani-katha is of four kinds-(1) to enumerate the worthless and ephemeral nature of this life, (2) to enumerate the worthless and ephemeral nature of the next life (in divine or animal realms), (3) to enumerate the foulness of one's own body, and (4) to enumerate the foulness of others' bodies.
२५०. (४) णिब्वेदणी कहा चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा
(१) इहलोगे दुच्चिण्णा कम्मा इहलोगे दुहफलविवागसंजुत्ता भवंति। (२) इहलोगे दुच्चिण्णा कम्मा परलोगे दुहफलविवागसंजुत्ता भवंति। (३) परलोगे दुच्चिण्णा कम्मा इहलोगे दुहफलविवागसंजुत्ता भवंति। (४) परलोगे दुच्चिण्णा कम्मा परलोगे दुहफलविवागसंजुत्ता भवंति।।
(१) इहलोगे सुचिण्णा कम्मा इहलोगे सुहफलविवागसंजुत्ता भवंति। (२) इहलोगे सुचिण्णा कम्मा परलोगे सुहफलविवागसंजुत्ता भवंति। (३) [ परलोगे सुचिण्णा कम्मा इहलोगे , सुहफलविवागसंजुत्ता भवंति। (४) परलोगे सुचिण्णा कम्मा परलोगे सुहफलविवागसंजुत्ता भवंति ]। ॐ
२५०. (४) निवेदनी कथा चार प्रकार की है। जैसे-(१) इस लोक (इस जन्म) के दुश्चीर्ण कर्म 卐 (अशुभ कर्म) इस लोक में (इसी जन्म) में दुःखमय फल देने वाले होते हैं। (२) इस लोक के दुश्चीर्ण ॥
कर्म परलोक (आगामी जन्म) में दुःखरूप फल देने वाले होते हैं। (३) परलोक के (पूर्वभवोपार्जित) : ॐ दुश्वीर्ण कर्म इस लोक में दुःखरूप फल देने वाले होते हैं। (४) परलोक के दुश्चीर्ण कर्म परलोक, ॐ (आगामी जन्म) में दुःखरूप फल देने वाले होते हैं। (इस प्रकार की प्ररूपणा करना)
(१) इस लोक के सुचीर्ण (शुभ कर्म) कर्म इसी लोक में सुखमय फल देने वाले होते हैं। (२) इस लोक के सुचीर्ण कर्म परलोक में सुखमय फल देने वाले होते हैं। (३) परलोक के सुचीर्ण कर्म इस लोक में सुखमय फल देने वाले होते हैं। (४) परलोक के सुचीर्ण कर्म परलोक में सुखमय फल देने वाले होते हैं।
250. (4) Nirvedani-katha is of four kinds-To enumerate that (1) bad karmas acquired during this lifetime bear bitter fruits (misery) during
this very life, (2) bad karmas acquired during this lifetime bear bitter $i fruits during the next life, (3) bad karmas acquired during the past 4
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स्थानांगसूत्र (१)
(426)
Sthaananga Sutra (1) 555555555555555555555555555555555555
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