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45 arya parivar (has a noble family). (2) Some man is noble but anarya 151 parivar (has an ignoble family). (3) Some man is ignoble but has a noble 卐 family. (4) Some man is ignoble and has an ignoble family. ॐ विवेचन-इन सूत्रों में आर्यअनार्य के १७ आलापक बताये हैं। प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार आर्य नौ के प्रकार के होते हैं। (१) क्षेत्र आर्य-जिसका जन्म आर्य क्षेत्र में हुआ हो, (२) आर्य जाति में उत्पन्न हुआ
जाति आर्य, (३) आर्य कुल में जन्मा-कुल आर्य, (४) आर्यों जैसा श्रेष्ठ व्यवसाय करने वाला-कर्म आर्य, (५) निर्दोष शिल्प से आजीविका करने वाला-शिल्प आर्य, (६) आर्यावर्त की भाषा (संस्कृत-प्राकृत आदि) बोलने वाला-भाषा आर्य, (७) पाँच ज्ञान में से किसी भी ज्ञान वाला-ज्ञान आर्य, (८) शुद्ध दृष्टि वाला-दर्शन आर्य, (९) श्रेष्ठ आचार का पालन करने वाला-चारित्र आर्य। टीकाकार ने आर्य के आठ गुण बताये हैं-शान्त, सहनशील, मनोजयी, सत्यवादी, जितेन्द्रिय, दानशील, दयालु और विनम्र स्वभाव वाला। जिनमें ये गुण नहीं होते उन्हें अनार्य माना गया है। यहाँ बताये गये १७ आलापकों में इन गुणों के परिप्रेक्ष्य में आर्य-अनार्य की व्याख्या करनी चाहिए। (हिन्दी टीका, पृष्ठ ७६२)
Elaboration-In the aforesaid aphorisms seventeen statements about arya and anarya have been given. According to Prajnapana Sutra aryas
(noble people; the Aryans) are of nine kinds-(1) kshetra arya-one born _in the area inhabited by aryas/Aryans, (2) jati arya-born in
arya/Aryan castes, (3) kula arya-born in arya/Aryan family, (4) karma arya--involved in business or profession associated with aryas / Aryans, (5) shilp arya-involved in arya (noble or faultless) craft for livelihood, (6) bhasha arya-speaking the languages (Sanskrit, Prakrit etc.) of Aryavart (the country of Aryans), (7) jnana arya-endowed with any of the five jnanas, (8) darshan . arya-endowed with righteous perception/faith, and (9) chaaritra arya-endowed with righteous conduct. The commentator (Tika) has given eight qualities of an arya (noble person)-serene, tolerant, self-controlled, truth speaking, conqueror of senses, generous, kind and modest. Those who are devoid of these qualities are called anarya. The aforesaid seventeen statements should be seen in context of these qualities: (Hindi Tika, p. 762)
२२८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अज्जे णाममेगे अज्जभावे, अज्जे णाममेगे अणज्जभावे, अणज्जे णाममेगे अज्जभावे, अणज्जे णाममेगे अणज्जभावे।
२२८. आर्य और आर्यभाव की दृष्टि से पुरुष चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई जाति से आर्य 卐 और आर्यभाव-सात्विक गुणों वाला होता है; (२) कोई जाति से आर्य किन्तु अनार्यभाव-(क्रोधादि
भाव) वाला; (३) कोई जाति से अनार्य, किन्तु आर्यभाव वाला; और (४) कोई जाति से अनार्य और ॐ अनार्यभाव वाला होता है।
भएक)
| स्थानांगसूत्र (१)
(412)
Sthaananga Sutra (1)
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