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१२८. देवेन्द्र देवराज शक्रेन्द्र की मध्यम परिषद् के देवों की स्थिति चार पल्योपम की है।। १२९. देवेन्द्र देवराज इशानेन्द्र की मध्यम परिषद् की देवियों की स्थिति चार पल्योपम की है।
128. The life span of the gods of the middle assembly of Devendra Shakrendra, the overlord of gods, is four Palyopam (a metaphoric unity of time). ___129. The life span of the goddesses of the middle assembly of Devendra Ishanendra, the overlord of gods, is four Palyopam (a metaphoric unit of time).
विवेचन-इन्द्र की मध्यम परिषद् में किसी भी आवश्यक विशिष्ट कार्य पर विचार-विमर्श किया जाता है। इसमें देवों के समान देवियाँ भी सादर सम्मिलित होती हैं।
Elaboration—In the middle assembly of Indra important necessary matters are discussed. This assembly is attended by gods and goddesses alike. संसार-पद SAMSAR-PAD (SEGMENT OF THE WORLD)
१३०. चउविहे संसारे पण्णत्ते, तं जहा-दव्यसंसारे, खेत्तसंसारे, कालसंसारे, भावसंसारे।
१३०. संसार चार प्रकार का है-(१) द्रव्य-संसार-जीव और पुद्गल। (२) क्षेत्र-संसार-जीवों ॐ और पुद्गलों के परिभ्रमण क्षेत्र। (३) काल-संसार-उत्सर्पिणी आदि काल में होने वाला जीव-पुद्गल
का परिभ्रमण। (४) भाव-संसार-औदयिक आदि भावों में जीवों का और वर्ण, रसादि में पुद्गलों का परिवर्तन या कर्म अथवा कर्मों के कारण राग और द्वेष। ____130. Samsar (the world) is of four kinds-(1) dravya-samsar (world of entities)--soul and matter, (2) kshetra-samsar (world of area)-the area of movement of soul and matter, (3) kaal-samsar (world of time)-the movement of soul and matter with reference to time, such as Utsarpini), si and (4) bhaava-samsar (world of state)-transformation of soul in gross physical and other kinds of bodies and that of matter in appearance, taste and other attributes; also karmas and their effects, such as attachment and aversion. दृष्टिवाद-पद DRISHTIVADA-PAD (SEGMENT OF DRISHTIVADA)
१३१. चउब्बिहे दिट्ठिवाए पण्णत्ते, तं जहा-परिकम्मं, सुत्ता, पुबगए, अणुजोगे।
१३१. दृष्टिवाद (द्वादशांगी श्रुत का बारहवाँ अंग) चार प्रकार का है-(१) परिकर्म-इसे पढ़ने से म सूत्र आदि के ग्रहण की योग्यता प्राप्त होती है। (२) सूत्र-इसे पढ़ने से द्रव्य-पर्याय-विषयक ज्ञान प्राप्त
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स्थानांगसूत्र (१)
(382)
Sthaananga Sutra (1)
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