SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 454
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०७. पुरुष चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई पुरुष आपात-भद्रक होता है, संवास-भद्रक नहीं। + (प्रारम्भ में मिलने पर भला दिखता है, किन्तु साथ रहने पर भला नहीं लगता)। (२) कोई संवास-भद्रक प्र होता है, आपात-भद्रक नहीं। (प्रारम्भ में मिलने पर भला नहीं दिखता, किन्तु साथ रहने पर भला लगता है)। (३) कोई आपात-भद्रक भी होता है और संवास-भद्रक भी। (४) कोई न आपात-भद्रक होता है 卐 और न संवास-भद्रक ही होता है। 107.Men are of four kinds-(1) Some man is aapaat-bhadrak (appears noble on introduction) and not samvas-bhadrak (appears noble when living together). (2) Some man is samvas-bhadrak noble when lives together and not aapaat-bhadrak noble initially, (3) Some man is aapaatbhadrak and samvas-bhadrak as well. (4) Some man is neither aapaatbhadrak nor samvas-bhadrak. arvef-VARJYA-PAD (SEGMENT OF FAULTS) १०८. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अप्पणो णाममेगे वज्जं पासति णो परस्स, परस्स ॐ णाममेगे वज्जं पासति णो अप्पणो, एगे अप्पणो वि वज्जं पासति परस्स वि, एगे णो अप्पणो वजं पासति णो परस्स। १०९. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अप्पणो णाममेगे वजं उदीरेइ णो परस्स, (४) [परस्स णाममेगे वज्जं उदीरेइ णो अप्पणो, एगे अप्पणोवि वजं उदीरेइ परस्सवि, एगे णो ॐ अप्पणो वज्जं उदीरेइ णो परस्स।] ११०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-अप्पणो णाममेगे वज्जं उवसामेति णो परस्स। म (४) [परस्स णाममेगे वज्जं उवसामेति णो अप्पणो, एगे अप्पणोवि वज्जं उवसामेति परस्सवि, एगे # णो अप्पणो वजं उवसामेति णो परस्स।] १०८. पुरुष चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई पुरुष अपना वर्ण्य (अवद्य/दोष) देखता है, दूसरे का नहीं (साधक या सज्जन पुरुष)। (२) कोई दूसरे का वर्ण्य देखता है, अपना नहीं (दुर्जन या ॐ अहंकारी)। (३) कोई अपना भी वर्ण्य देखता है और दूसरे का भी (सरल चित्त)। (४) कोई न अपना म वर्ण्य देखता है और न दूसरे का देखता है (अज्ञानी, मूर्ख)। १०९. पुरुष चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई पुरुष अपने अवद्य (पाप या दोष) की उदीरणा 卐 करता है अपना दोष प्रकट करता है या स्वीकारता है। दूसरे के अवध की नहीं। सूत्र १०८ की तरह + चार विकल्प यहाँ भी समझें। ११०. इसी तरह पुरुष चार प्रकार के होते हैं-(१) कोई पुरुष अपने वर्ण्य (कषाय या दोष) को म उपशान्त (निवारण) करता है, दूसरे के वर्ण्य को नहीं। यहाँ भी सूत्र १०८ की तरह चार विकल्प होते 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听四 ___108. Men are of four kinds-(1) Some man looks at his own variya (faults) and not at others' faults (such as a spiritualist or a noble person). स्थानांगसूत्र (१) (372) Sthaananga Sutra (1) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002905
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2004
Total Pages696
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_sthanang
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy