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- सत्य-मृषा-पद SATYA-MRISHA-PAD (SEGMENT OF TRUTH AND UNTRUTH)
१०२. चउबिहे सच्चे पण्णत्ते, तं जहा-काउज्जुयया, भासुज्जुयया, भावुज्जुयया, अविसंवायणाजोगे।
१०३. चउबिहे मोसे पण्णत्ते, तं जहा-कायअणुज्जुयया, भासअणुज्जुयया, भावअणुज्जुयया, विसंवादणाजोगे।
१०२. सत्य चार प्रकार का है। (१) काय-ऋजुता-काया की सरलता। (२) भाषा-ऋजुता-वचन की सरलता अथवा वाणी से सत्य कथन करना। (३) भाव-ऋजुता-मन में सरलता, सत्य कहने का भाव रखना। (४) अविसंवादना-योग-विसंवादरहित, किसी को धोखा न देने वाली मन, वचन, काया की परस्पर अविरोधी प्रवृत्ति।
१०३. मृषा (असत्य) चार प्रकार का है-(१) काय-अनजुकता काय के द्वारा सत्य को छिपाने :_ वाला संकेत करना। (२) भाषा-अनृजुकता-वचन के द्वारा असत्य का प्रतिपादन करना। ऊ (३) भाव-अनृजुकता-मन में कुटिलता रखकर असत्य कहने का भाव रखना। (४) विसंवादना-योग5 विसंवादयुक्त, दूसरों को धोखा देने वाली मन, वचन, काय की परस्पर विरोधी प्रवृत्ति रखना।।
___102. Satya (truth) is of four kinds—(1) kaya-rijuta-physical simplicity or to present truth in gestures, (2) bhasha-rijuta-vocal simplicity or to speak truth, (3) bhaava-rijuta-mental simplicity or to have attitude of speaking truth, and (4) avisamvadana-yoga--absence of untruth and deceit or to have uniform mental, vocal and physical attitude of not deceiving anyone.
103. Mrisha (untruth) is of four kinds—(1) kaya-anrijukata--physical complexity or to conceal truth by gestures, (2) bhasha-anrijukata-vocal complexity or to speak untruth, (3) bhaava-anrijukata-mental complexity or to have attitude of speaking untruth, and (4) avisamvadana-yoga-association with untruth and deceit or to have contradictions in mental, vocal and physical attitude with an intent to deceive. प्रणिधान-पद PRANIDHAN-PAD (SEGMENT OF CONCENTRATION)
१०४. चउबिहे पणिधाणे पण्णत्ते, तं जहा-मणपणिधाणे, वइपणिधाणे, कायपणिधाणे, + उवकरणपणिधाणे। एवं-णेरइयाणं पंचिंदियाणं जाव वेमाणियाणं। १०५. चउबिहे सुप्पणिहाणे म पण्णत्ते, तं जहा मणसुप्पणिहाणे, जाव [ वइसुप्पणिहाणे, कायसुप्पणिहाणे ], उवगरणसुप्पणिहाणे, एवं-संजयमणुस्सण वि।
१०४. प्रणिधान (मन आदि की एकाग्रता, स्थिरता) चार प्रकार का है-(१) मनः-प्रणिधान, (२) वाक्-प्रणिधान, (३) काय-प्रणिधान, (४) उपकरण-प्रणिधान (वस्त्र-पात्र आदि उपकरणों का प्रयोग)।
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| स्थानांगसूत्र (१)
(370)
Sthaananga Sutra (1)
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