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मानसिक विचारधारा। (३) धHध्यान-श्रुतधर्म और चारित्रधर्म सम्बन्धी एकाग्र चिन्तन। (४) शुक्लध्यान-कर्म-क्षय के कारणभूत शुद्धोपयोग में लीनता।
60. Dhyana (engrossed mental state) is of four kinds- 5 (1) Arttadhyana--mental state engrossed in sorrow and grief. (2) Raudradhyana-mental state engrossed in cruelty and violence. (3) Dharmadhyana-mental state engrossed in scriptures and related in conduct. (4) Shukladhyana-mental state engrossed in spiritual meditation leading to shedding of karmas.
६१. अट्टेझाणे चउविहे पण्णत्ते, तं जहा(१) अमणुण्ण-संपओग-संपउत्ते, तस्स विप्पओग-सति-समण्णागते यावि भवति। (२) मणुण्ण-संपओग-संपउत्ते, तस्स अविप्पओग-सति-समण्णागते यावि भवति। (३) आतंक-संपओग-संपउत्ते, तस्स विप्पओग-सति-समण्णागते यावि भवति।
(४) परिजुसित-काम-भोग-संपओग-संपउत्ते, तस्स अविप्पओग-सति-समण्णागते यावि भवति।
६१. आर्तध्यान चार प्रकार का होता है। जैसे-(१) अमनोज्ञ (अप्रिय) वस्तु का संयोग होने पर उसे दूर करने की निरन्तर चिन्ता करना। (२) मनोज्ञ (प्रिय) वस्तु का संयोग होने पर उसका वियोग न हो, बार-बार ऐसी चिन्ता करना। (३) आतंक (घातक रोग) होने पर उसको दूर करने की बार-बार चिन्ता करना। (४) प्रीति कारक काम-भोग का संगम होने पर उसका वियोग न हो, बार-बार ऐसी चिन्ता करना।
61. Artadhyang is of four kinds—(1) On association with amanojna (undesired) thing to remain continuously worried about terminating 4 it. (2) On association with manojna (desired) thing to remain continuously worried about not dissociating with that. (3) On being afflicted with atank (fatal disease) to remain continuously worried about removing it. (4) On association with joyous carnal pleasures (pritikarak kaam-bhog) to remain continuously worried about avoiding termination of that.
६२. अट्टस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता, तं जहा-कंदणता, सोयणता, तिप्पणता, पडिदेवणता।
६२. आर्तध्यान के चार लक्षण हैं-(१) क्रन्दनता-आक्रन्द करना। (२) शोचनता-शोक करना। (३) तेपनता-आँसू बहाना। (४) परिदेवनता-विलाप करना। 卐 स्थानांगसूत्र (१)
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Sthaananga Sutra (1)
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