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95555555555555555550 ॐ इसी प्रकार भिक्षाक (भिक्षा-भोजी साधु) चार प्रकार के होते हैं। जैसे-(१) त्वक्-खाद समान+ नीरस, रूक्ष, अन्त-प्रान्त आहारभोजी साधु। (२) छल्ली-खाद समान-लेपरहित रूक्ष आहारभोजी साधु।
(३) काष्ठ-खाद समान-दूध, दही, घृतादि से रहित (विगयरहित) आहारभोजी साधु। ॐ सार-खाद समान-दूध, दही, घृतादि से परिपूर्ण आहारभोजी साधु।
(१) त्वक्-खाद समान (नीरसभोजी) भिक्षुक का तप सार-खाद-घुण के समान प्रखरतर होता है। (२) सार-खाद समान (सरसभोजी) भिक्षुक का तप त्वक्-खाद-घुण के समान अल्पतर होता है।
(३) छल्ली-खाद समान (लेपरहित भोजी) भिक्षुक का तप काष्ठ-खाद-घुण के समान प्रखर कहा गया है। 4 (४) काष्ठ-खाद समान (विगयरहित) भिक्षुक का तप छल्ली-खाद-घुण के समान (सामान्य) होता है।
56. Ghun (wood-worm) are of four kinds--(1) tvak-khaad—that consumes outer part or skin of bark, (2) chhalli-khaad-that consumes inner part of bark, (3) kaasth-khaad-that consumes wood, and (4) saarkhaad--that consumes just the central core of wood.
In the same way bhikshaak (alms eater ascetics) are of four kinds (1) like tvak-khaad worm-one who consumes tasteless, dry and leftover ॐ food, (2) like chhalli-khaad worm-one who consumes curry-less dry 卐 food, (3) like kaasth-khaad worm-one who consumes food free of +
pro „ribed things like milk, curd, butter etc., and (4) like saar-khaad worm-one who consumes food saturated with rich ingredients like milk, curd, butter etc.
(1) Austerity of an ascetic eating like tvak-khaad worm is very intense like saar-khaad worm. (2) Austerity of an ascetic eating like saar-khaad worm is ineffective like tvak-khaad worm. (3) Austerity of an ascetic eating like chhalli-khaad worm is intense like kaasth-khaad worm. (4) Austerity of an ascetic eating like kaasth-khaad worm is ordinary like chhalli-khaad worm.
विवेचन-भिक्षा से जीवन निर्वाह करने वाले को भिक्खाग कहा जाता है। सूत्रकृतांग (१६) में + जितेन्द्रिय, ममत्वरहित, स्थितप्रज्ञ और परदत्तभोजी आदि गुणों से युक्त मुनि को भिक्षु कहा है। यहाँ घुण 3 के साथ भिक्षु की तुलना की है। जिस घुण कीट के मुख की भेदन-शक्ति जितनी अल्प या अधिक होती म है, उसी के अनुसार वह त्वचा, छाल, काठ या सार को भीतर तक खाता है। (१) सबसे प्रखर भेदन
शक्ति वाला घुण वृक्ष के सार तक पहुँच जाता है। जो भिक्षु प्रान्त (बचा-खुचा) स्वल्प-रूखा-सूखा आहार करता है, उसके कर्म-क्षय करने वाले तप की शक्ति सार को खाने वाले घुण के समान सबसे अधिक होती है। (२) जो भिक्षु दूध, दही आदि विकृतियों से परिपूर्ण आहार करता है, उसके कर्म-क्षय
करने वाले तप की शक्ति त्वचा को खाने वाले घुण के समान अत्यल्प होती है। (३) जो भिक्षु लेपरहित ॐ आहार करता है, उसकी कर्म-क्षय करने की शक्ति काठ को खाने वाले घुण के समान होती है।
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स्थानांगसूत्र (१)
(350)
Sthaananga Sutra (1)
日历步步步步步步步步牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙555558
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