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४१२. धर्मनाथ तीर्थंकर के पश्चात् शान्तिनाथ तीर्थंकर तीन सागरोपमों में से चौथाई भाग कम पल्योपम बीत जाने पर समुत्पन्न हुए।
४१३. श्रमण भगवान महावीर के पश्चात् तीसरे पुरुषयुग जम्बूस्वामी तक युगान्तकर भूमि, अर्थात् निर्वाणगमन का क्रम चलता रहा है।
४१४. मल्ली अर्हत् तीन सौ पुरुषों के साथ मुण्डित होकर प्रवजित हुए। ४१५. इसी प्रकार पार्श्व अर्हत् भी तीन सौ पुरुषों के साथ प्रव्रजित हुए।
४१६. श्रमण भगवान महावीर के तीन सौ शिष्य चौदह पूर्वधर थे। वे जिन नहीं होते हुए भी जिन के समान थे। सर्वाक्षर-सन्निपाती तथा भगवान के समान यथार्थ व्याख्यान करने वाले थे। यह भगवान महावीर की चतुर्दशपूर्वी उत्कृष्ट शिष्य-सम्पदा थी।
४१७. तीन तीर्थंकर चक्रवर्ती हुए-शान्ति, कुन्थु और अरनाथ।
412. Shantinaath Tirthankar was born after a passage of three quarters of a Palyopam less three Sagaropam.
413. After Bhagavan Mahavir the sequence of liberations (yugantkar bhumi) continued till the third head of the order (purush-yug) Jambuswami.
414. Malli Arhat got tonsured and initiated along with three hundred persons. 415. In the same way Parshva Arhat also got initiated along with three hundred persons.
416. Three hundred disciples of Shraman Bhagavan Mahavir had the knowledge of fourteen Purvas (subtle canon). Although not Jina, they were like a Jina. They were sarvakshar-sannipati and stated truth and reality like Bhagavan himself. This was the maximum expert category of Bhagavan Mahavir's fourteen-Purva-knowing disciples. ___417. Three Tirthankars were Chakravartis (emperors)-Shanti, Kunthu and Ara Naath.
विवेचन-वर्णमाला के चौंसठ अक्षरों के संयोग-सन्निपात असंख्य प्रकार के होते हैं। असंख्यात भेदों को जानने वाला ज्ञानी सर्वाक्षर-सन्निपाती श्रुतधर कहलाता है।
Elaboration-There are innumerable different combinations of the sixty four letters of the alphabet. A scholar who knows all these innumerable combinations is called sarvakshar-sannipati. तृतीय स्थान
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Third Sthaan 卐955555555555555555555
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