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perversion. Then he confronts and overpowers afflictions. Afflictions never overpower him.
(3) On getting tonsured and getting initiated as a homeless ascetic after renouncing his household, he has belief, and so on up to... perversion in the six jiva-nikaya (six life-forms). Then he confronts and overpowers afflictions. Afflictions never overpower him.
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(2) On getting tonsured and getting initiated as a homeless ascetic after renouncing his household, he has belief, and so on up to... 5 perversion in the five great vows. Then he confronts and overpowers afflictions. Afflictions never overpower him.
पृथ्वी - वलय - पद PRITHVI- VALAYA-PAD (SEGMENT OF RINGS AROUND EARTH)
४०७. एगमेगा णं पुढवी तिहिं वलएहिं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ता, तं जहाघणोदधिवलएणं, घणवातवलएणं, तणुवायवलएणं ।
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407. Each of the seven prithvis (hells) are surrounded by three valayas ( rings) - ( 1 ) ghanodadhi-valaya (ring of frozen water, like a block of ice), (2) ghanavaat-valaya (ring of dense air), and (3) tanuvaat-valaya (ring of rarefied air; as compared to the aforesaid dense air). विग्रहगति - पद VIGRAHA GATI PAD (SEGMENT OF REINCARNATION - MOVEMENT)
४०८. णेरइया णं उक्कोसेणं तिसमइएणं विग्गहेणं उववज्जंति । एगिंदियवज्जं जाव वेमाणियाणं ।
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४०७. रत्नप्रभादि सातों पृथ्वियाँ प्रत्येक तीन-तीन वलयों के द्वारा चारों ओर से घिरी हुई हैं- 5 (१) घनोदधिवलय - (हिम - शिला के समान घन रूप में जमा हुआ जल) से, (२) घनवातवलय - (घन रूप ठोस वायु) से, और (३) तनुवातवलय - (घन की अपेक्षा पतली वायु) से ।
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408. Besides one sensed beings all beings belonging to all dandaks (places of suffering) from hell beings to Vaimanik gods are born with an oblique movement of upto three Samayas.
स्थानांगसूत्र (१)
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४०८. एकेन्द्रियों को छोड़कर नैरयिकों से वैमानिक देवों तक के सभी दण्डकों के जीव उत्कृष्ट तीन फ्र समय वाले विग्रहगति से उत्पन्न होते हैं।
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विवेचन - जब जीव मरकर अगले जन्म में शरीर धारण करने के लिए जाता है, उसके बीच की गति को विग्रहगति कहते हैं । यह दो प्रकार की होती है - ऋजुगति और वक्रगति । ऋजगति सीधी समश्रेणी वाले स्थान पर उत्पन्न होने वाले जीव की होती है और उसमें एक समय लगता है । जब जीव मरकर विषम श्रेणी वाले स्थान पर उत्पन्न होता है तब उसे मुड़कर के नियत स्थान पर जाना पड़ता है। इसलिए 5
Sthaananga Sutra (1)
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