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5 (2) asanklisht-leshya (to die without any deterioration in the purity of
d (3) paryavajat-leshya (to die with an improvement in purity fi of leshya). 404. Baal-pundit-maran (death of one who is both disciplined
and indisciplined) is of three kinds-(1) sthit-leshya (to die in the same leshya or state of soul), (2) asanklisht-leshya (to die without any
deterioration in the painful leshya), and (3) aparyavajat-leshya (to die fi without an improvement in purity of leshya). अश्रद्धावान-पराभव-पद ASHRADDHAVAN-PARABHAV-PAD
(SEGMENT OF DEFEAT OF NON-BELIEVER) . ४०५. तओ ठाणा अव्ववसितस्स अहिताए असुभाए अखमाए अणिस्सेसाए अणाणुगामियत्ताए भवंति, तं जहा. (१) से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पवइए णिग्गंथे पावयणे संकिते कंखिते वितिगिच्छिते भेदसमावण्णे कलुससमावण्णे णिग्गंथं पावयणं णो सद्दहति णो पत्तियति णो रोएति, तं परिस्सहा अभिमुंजिय-अभिमुंजिय-अभिभवंति, णो से परिस्सहे अभिमुंजिय-अभिमुंजिय अभिभवइ।
(२) से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पवइए पंचहिं महब्बएहिं संकिते जाव के कलुससमावण्णे पंच महव्वयाई णो सद्दहति जाव णो से परिस्सहे अभिमुंजिय-अभिजुंजिय ॐ अभिभवति।
(३) से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइए छहिं जीवणिकाएहिं जाव अभिभवति।
४०५. अव्यवस्थित (अश्रद्धावान् या अस्थिरचित्त) निर्ग्रन्थ के लिए तीन स्थान अहित, अशुभ, अक्षम, अनिःश्रेयस और अनानुगामिता के कारण होते हैं- .
(१) वह मुण्डित हो, तथा अगार से अनगार धर्म में प्रव्रजित होकर निर्ग्रन्थ प्रवचन में शंकाशील, संशयग्रस्त, विचिकित्सायुक्त, भेदसमापन्न और कलुषित मन होकर निर्ग्रन्थ-प्रवचन पर श्रद्धा नहीं
करता, प्रतीति नहीं करता, रुचि नहीं करता। उसे परीषह उपस्थित होकर अभिभूत कर देते हैं, वह क परीषहों से जूझ-जूझकर उन्हें अभिभूत (पराजित) नहीं कर पाता।
(२) वह मुण्डित तथा अगार से अनगार धर्म में प्रव्रजित होकर पाँच महाव्रतों में शंकाशील यावत् म कलुषसमापन्न होकर पाँच महाव्रतों पर श्रद्धा नहीं करता और परीषहों से जूझ-जूझकर उन्हें अभिभूत ॐ नहीं कर पाता। म (३) वह मुण्डित हो अगार से अनगार धर्म में प्रव्रजित होकर छह जीव-निकाय पर श्रद्धा नहीं करता,
प्रतीति नहीं करता। उसे परीषह प्राप्त होकर अभिभूत कर देते हैं, वह उन्हें अभिभूत नहीं कर पाता।
फ़ तृतीय स्थान
(309)
Third Sthaan
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