________________
)))))))))))5555555555555555555555 98
8555555555555555555555555555555555555 卐 छउमत्थे णं मणुस्से एगचक्खू, देवे बिचक्खू, तहारूवे समणे वा माहणे वा उप्पण्णणाणदंसणधरे तिचक्खुत्ति वत्तव्वं सिया।
३८१. चक्षुष्मान् (नेत्र वाले) तीन प्रकार के हैं-(१) एकचक्षु, (२) द्विचक्षु, और (३) त्रिचक्षु।
(१) छद्मस्थ मनुष्य एक चक्षु होता है। (२) देव द्विचक्षु होते हैं, क्योंकि उनके द्रव्य नेत्र के साथ अवधिज्ञान रूप दूसरा भी नेत्र होता है। (३) केवलज्ञान और केवलदर्शन का धारक श्रमण-माहन त्रिचक्षु होते हैं।
381. People having vision are of three kinds-(1) ekachakshu (single vision), (2) dvichakshu (double vision), and (3) trichakshu (triple vision).
(1) A chhadmasth (a person in the state of bondage) is ekachakshu $ because he only has physical means of vision, i.e. eyes. (2) A dev (divine being) is dvichakshu because besides eyes he also has avadhijnana as another means of vision. (3) An ascetic with keval-jnana and kevaldarshan is trichakshu because besides eyes he has these two faculties. अभिसमागम-पद ABHISAMAGAM-PAD (SEGMENT OF RIGHT KNOWLEDGE)
३८२. तिविहे अभिसमागमे पण्णत्ते, तं जहा-उड्डूं, अहं, तिरियं।
जया णं तहारूवस्स समणस्स वा माहणस्स वा अतिसेसे णाणदंसणे समुप्पज्जति, से णं तप्पढमताए उड्डमभिसमेति, ततो तिरियं, ततो पच्छा अहे। अहोलोगे णं दुरभिगमे पण्णत्ते समणाउसो!
३८२. अभिसमागम-(वस्तु-स्वरूप का यथार्थज्ञान, सम्यग्ज्ञान) तीन प्रकार का होता है(१) ऊर्ध्वअभिसमागम, (२) तिर्यक्अभिसमागम, और (३) अधःअभिसमागम। ___ तथारूप श्रमण-माहन को जब अतिशययुक्त ज्ञान-दर्शन (अवधिज्ञान) उत्पन्न होता है, तब वह सर्वप्रथम ऊर्ध्वलोक को जानता है। तत्पश्चात् तिर्यक्लोक को और उसके पश्चात् अधोलोक को जानता है। __ हे आयुष्मन् श्रमणो ! अधोलोक सबसे अधिक दुरभिगम; कठिनाई से जाना जाता है।
382. Abhisamagam (the factual knowledge of the true form of things or right knowledge) is of three kinds—(1) urdhva-abhisamagam (right knowledge of the upper world), (2) tiryak-abhisamagam (right knowledge of the transverse world), and (3) adho-abhisamagam (right knowledge of the lower world).
When an ascetic as described in scriptures acquires miraculous knowledge and perception (avadhi-jnana) he first of all knows and understands the urdhva lok (upper world), then the tiryak lok (transverse world) and last of all the adho lok (lower world).
)
卐))
स्थानांगसूत्र (१)
(302)
Sthaananga Sutra (1)
95%%%%%%%步步步步步牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙%%%%%%%
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org