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मातृ-पितृ - अंग - पद MATRI PITRI ANGA-PAD
(SEGMENT OF ANATOMICAL INHERITANCE FROM PARENTS) ३७६. तओ पितियंगा पण्णत्ता, तं जहा - अट्ठी, अट्ठिमिंजा, केसमंसुरोमणहे । ३७७. तओ माउयंगा पण्णत्ता, तं जहा-मंसे, सोणिते, मत्थुलिंगे ।
३७६. तीन अंग पितृ-अंग (पिता के वीर्य से बनने वाले) होते हैं- (१) अस्थि, (२) मज्जा, और (३) केश - दाढ़ी-मूँछ, रोम एवं नख ।
मनोरथ - पद MANORATH-PAD (SEGMENT OF WISH)
३७८. तिहिं ठाणेहिं समणे णिग्गंथे महाणिज्जरे महापज्जवसाणे भवति, तं जहा
एवं समणसा सवयसा सकायसा पागडेमाणे समणे निग्गंथे महाणिज्जरे महापज्जवसाणे भवति । ३७८. तीन प्रकार की शुभ भावना करने से श्रमण निर्ग्रन्थ महानिर्जरा और महापर्यवसान वाला होता है
मन, वचन, काय से उक्त भावना करता हुआ श्रमण निर्ग्रन्थ महानिर्जरा तथा महापर्यवसान वाला होता है।
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३७७. तीन अंग मातृ-अंग होते हैं - (१) माँस, (२) शोणित (रक्त), और (३) मस्तुलिंग (मस्तिष्क)। 卐 376. There are three pitri-anga ( parts of the body made of father's 5 semen)—(1) asthi (bones), (2) majja (marrow), and (3) kesh-beardmoonchh, roam and nakh (hair, beard, moustache, body-hair and nails).
378. Three good wishes of a Shraman nirgranth lead to mahanirjara (maximum shedding of karmas) and mahaparyavasaan (sublime departure or death)
तृतीय स्थान
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377. There are three matri-anga (parts of the body made of mother's 5 menstrual discharge ) – ( 1 ) mansa ( flesh ), (2) shonit (blood), and 5 (3) mastuling (brain).
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(299)
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Third Sthaan
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(१) कया णं अहं अप्पं वा बहुयं सुयं अहिज्जिस्सामि ? (२) कया णं अहं एकल्लविहारपडिमं 5 उवसंपज्जित्ता णं विहरिस्सामि ? (३) कया णं अहं अपच्छिममारणंतियसंलेहणा - झूसणा-झूसिते भत्तपाणपडियाइक्खिते पाओवगते कालं अणवकंखमाणे विहरिस्सामि ?
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(१) कब मैं अल्प या बहुत श्रुत का अध्ययन करूँगा ! (२) कब मैं एकलविहारप्रतिमा को स्वीकार
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कर विहार करूँगा ! (३) कब मैं (जीवन के अन्तिम समय में) अपश्चिम मारणान्तिक संलेखना की 5 आराधना करता हुआ, भक्त-पान का परित्याग कर पादोपगमन संथारा स्वीकार कर मृत्यु की आकांक्षा नहीं करता हुआ विचरूँगा ?
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