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२२८. श्रुतधर (शास्त्रज्ञाता) पुरुष तीन प्रकार के होते हैं - ( १ ) सूत्रधर (सूत्र को कण्ठस्थ करने 5 वाले), (२) अर्थधर (अर्थ के ज्ञाता व चिन्तक ), और (३) तदुभयधर (सूत्र और अर्थ दोनों के ज्ञाता) ।
विशेष- सूत्रधर में ज्ञान की विशेषता होती है, अर्थधर दर्शन की गहराई में चला जाता है तथा दोनों का ज्ञाता चारित्र की उपलब्धि भी कर लेता है।
228. Shrut-dhar (scholar of scriptures) is of three kinds— (1) sutradhar (one who memorizes the text ), (2) arth-dhar (one who knows the meaning and ponders over it), and (3) tadubhayadhar (scholar of both text and its meaning).
Note-Sutradhar specializes in knowledge, arth-dhar goes deeper into perception and faith, and a scholar of both acquires right conduct as well.
उपधि - पद UPADHI-PAD (SEGMENT OF MEANS OF SUSTENANCE)
२२९. कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंधीण वा तओ वत्थाइं धारित्तए वा परिहरित्तए वा, तंज- जंगिए, भंगिए, खोमिए ।
२२९. निर्ग्रन्थ (साधुओं) व निर्ग्रन्थिनी (साध्वियों ) को तीन प्रकार के वस्त्र रखना और पहनना कल्पता है - १. जांगिक ( ऊनी), (२) भांगिक ( अलसी या सन - निर्मित), (३) क्षौमिक ( कपास - रुईनिर्मित) ।
२३०. निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थिनियों को तीन प्रकार के पात्र रखना और उनका उपयोग करना कल्पता है-(१) अलाबु–(तुम्बा) पात्र, (२) दारु - पात्र, और (काष्ठ) (३) मृत्तिका - पात्र (मिट्टी का ) ।
229. It is prescribed (kalpana) for nirgranth ( Jain male ascetic) and 5 nirgranthini (Jain female ascetic) to keep and wear three kinds of cloth — (1) jangik ( woolen ), ( 2 ) bhangik ( made of alsi or flax and san or 卐 hemp fibres), and (3) kshaumik (cotton).
२३०. कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा तओ पायाइं धारितए वा परिहरितए वा, तं जहा -लाउयपाए वा, दारुपाए वा मट्टियापाए वा ।
230. It is prescribed (kalpana) for nirgranth ( Jain male ascetic) and 5 nirgranthini (Jain female ascetic) to keep and use three kinds of bowl - ( 1 ) alabu (gourd) bowl, (2) daru ( wooden ) bowl, and (3) mrittika (earthen) bowl.
तृतीय स्थान
२३१. तिर्हि ठाणेहिं वत्थं धरेज्जा, तं जहा - हिरिपत्तियं, दुर्गुछापत्तियं परीसहपत्तियं । २३१. निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थिनियाँ तीन कारणों से वस्त्र धारण कर सकती हैं - (१) हीप्रत्यय से 5 (लज्जा- निवारण के लिए), (२) जुगुप्साप्रत्यय से ( निन्दा या घृणा निवारण के लिए), (३) परीषहप्रत्यय से (शीतादि परीषह निवारण के लिए)।
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