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(३) कर्मपुरुष (वासुदेव)। ३४. मध्यम पुरुष तीन प्रकार के होते हैं-(१) उग्र, (२) भोग, और है (३) राजन्य। ३५. जघन्य पुरुष तीन प्रकार के होते हैं-(१) दास, (२) भृतक, और (३) भागीदार।
29. Purush (men) are of three kinds—(1) naam purush (Purush by name), (2) sthapana purush (man by installation), and (3) dravya purush (physical man). 30. Purush (men) are of three kinds (1) jnana purush (man with knowledge), (2) darshan purush (man with perception/faith), and (3) chaaritra purush (man with conduct). 31. Purush (men) are of three kinds—(1) veda purush (man who experiences masculinity), (2) chinha purush (man with signs of masculinity), and (3) abhilaap purush (grammatical masculine gender). 32. Purush (men) are of three kinds—(1) uttam purush (superior man), (2) madhyam purush (mediocre man), and (3) jaghanya purush (inferior man). 33. Uttam purush (superior men) are of three kinds—(1) dharm purush (Arhant), (2) bhog purush (chakravarti), and (3) karma purush (Vasudev). 34. Madhyam purush (mediocre men) are of three kinds—(1) ugra (ruling class), (2) bhog (scholarly people), and (3) rajanya (companions of a king). 35. Jaghanya purush (inferior men) are of three kinds—(1) daas (slaves), (2) bhritak (servants), and (3) bhaagidar (labour working on share of produce).
विवेचन-उक्त सूत्रों में कहे गये विविध प्रकार के पुरुषों का स्पष्टीकरण इस प्रकार है
नामपुरुष-जिस घेतन या अचेतन वस्तु का 'पुरुष' नाम हो वह। स्थापनापुरुष-पुरुष की प्रतिमा या 5 जिस किसी अन्य वस्तु में 'पुरुष' का आरोपण किया हो वह। द्रव्यपुरुष-पुरुष रूप में उत्पन्न होने वाला जीव या पुरुष का मृत शरीर।
ज्ञानपुरुष-ज्ञानप्रधान पुरुष। दर्शनपुरुष-सम्यग्दर्शन वाला पुरुष। चारित्रपुरुष-चारित्र से सम्पन्न पुरुष।
वेदपुरुष-पुरुषवेद का अनुभव करने वाला जीव। चिह्नपुरुष-दाढ़ी-मूंछ आदि चिह्नों से युक्त पुरुष। अभिलापपुरुष-लिंगानुशासन (व्याकरण) के अनुसार पुल्लिंग द्वारा कहा जाने वाला शब्द।
उत्तम प्रकार के पुरुषों में भी उत्तम धर्मपुरुष तीर्थंकर अरहंत देव होते हैं। उत्तम प्रकार के मध्यम पुरुषों में भोगपुरुष चक्रवर्ती माने जाते हैं और उत्तम प्रकार के जघन्यपुरुषों में कर्मपुरुष वासुदेव होते हैं। है ___ उग्रवंशी या प्रजा-संरक्षण का कार्य करने वालों (आरक्षक वर्ग) को उग्रपुरुष कहा जाता है। भोग या भोजवंशी, गुरु या पुरोहित स्थानीय पुरुषों को भोग या भोजपुरुष कहा जाता है। राजा के मित्र स्थानीय पुरुषों को राजन्यपुरुष कहते हैं।
मूल्य देकर खरीदे गये सेवक को दास (गुलाम), वेतन लेकर काम करने वाले को भृतक तथा जो खेती, व्यापार आदि में तीसरे, चौथे आदि भाग को लेकर कार्य करते हैं, उन्हें भाइल्लक या भागीदार
तृतीय स्थान
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Third Sthaan
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