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5555555555555555555555555555555555556 ज (१) एगे देवे अण्णे देवे, अण्णेसिं देवाणं देवीओ य अभिमुंजिय अभिमुंजिय परियारेति,
अप्पणिज्जियाओ देवीओ अभिमुंजिय अभिमुंजिय परियारेति, अप्पाणमेव अप्पणा विउव्विय ॐ विउब्विय परियारेति।
(२) एगे देवे णो अण्णे देवे, णो अण्णेहिं देवाणं देवीओ अभिमुंजिय अभिमुंजिय परियारेति, अप्पणिज्जियाओ देवीओ अभिमुंजिय अभिमुंजिय परियारेति, अप्पाणमेव अप्पणा विउव्विय ॐ विउब्विय परियारेति।
(३) एगे देवे णो अण्णे देवे, णो अण्णेसिं देवाणं देवीओ अभिमुंजिय अभिमुंजिय परियारेति, मणो अप्पणिज्जियाओ देवीओ अभिमुंजिय अभिमुंजिय परियारेति, अप्पाणमेव अप्पणा विउव्विय ॐ विउब्विय परियारेति।
९. परिचारणा (देवों में रति क्रीड़ा) तीन प्रकार की है-(१) कुछ देव अन्य देवों तथा अन्य देवों की फ़ देवियों का आलिंगन कर-कर परिचारण करते हैं, कुछ देव अपनी देवियों का बार-बार आलिंगन करके परिचारणा करते हैं और कुछ देव अपने ही शरीर से बनाये हुए विभिन्न रूपों से परिचारणा करते हैं।
(२) कुछ देव अन्य देवों तथा अन्य देवों की देवियों का बार-बार आलिंगन करके परिचारणा नहीं 5 करते, किन्तु अपनी देवियों का आलिंगन कर-करके परिचारणा करते हैं तथा अपने ही शरीर से ॐ बनाये हुए विभिन्न रूपों से परिचारणा करते हैं।
(३) कुछ देव अन्य देवों तथा अन्य देवों की देवियों से आलिंगन कर-कर परिचारणा नहीं करते, ॐ अपनी देवियों का भी आलिंगन कर-करके परिचारणा नहीं करते। केवल अपने ही शरीर से बनाये हुए विभिन्न रूपों से परिचारणा करते हैं।
9. Paricharana (act of sexual gratification in divine beings) is of three ॐ kinds—(1) Some gods indulge in paricharana (act of sexual gratification)
by repeatedly embracing other gods and goddesses of other gods; some
gods indulge in paricharana by repeatedly embracing their own 4 goddesses and some gods indulge in paricharana with different forms created from their owr bodies.
(2) Some gods do not indulge in paricharana (act of sexual 4 gratification) by repeatedly embracing other gods and goddesses of other
gods; but do so by repeatedly embracing their own goddesses and also with different forms created from their own bodies.
(3) Some gods neither indulge in paricharana (act of sexual gratification) by repeatedly embracing other gods and goddesses of other gods nor by repeatedly embracing their own goddesses but only with different forms created from their own bodies.
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स्थानांगसूत्र (१)
(176)
Sthaananga Sutra (1)
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