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जंजोयणविच्छिण्णं, पल्लं एगाहियप्परूढाणं। होज णिरंतणिचितं, भरितं वालग्गकोडीणं॥१॥ वाससए वाससए, एक्केक्के अवहडंमि जो कालो। सो कालो बोद्धव्यो, उवमा एगस्स पल्लस्स ॥२॥ एएसिं पल्लाणं कोडाकोडी हवेज्ज दस गुणिता।
तं सागरोवमस्स उ, एगस्स भवे परीमाणं॥३॥ संग्रहणी-गाथा ४०५. औपमिक अद्धाकाल दो प्रकार का होता है-(१) पल्योपम, और (२) सागरोपम। पल्योपम किसे कहते हैं ?
(उदाहरण-) एक योजन विस्तीर्ण गड्ढे को एक दिन से लेकर सात दिन तक के उगे हुए बालागों के + खण्डों से ठसाठस भरा जाय। तदनन्तर सौ-सौ वर्षों में एक-एक बालाग्र खण्ड के निकालने पर जितने + काल में वह गड्डा खाली होता है, उतने काल को पल्योपम कहा जाता है। दश कोडाकोडी पल्योपमों का एक सागरोपम काल होता है। (औपमिक काल का विस्तृत वर्णन अनुयोगद्वार, भाग २, पृष्ठ १५७ पर देखें)।
405. Aupamik addhakaal (metaphoric time) is of two kinds$ (1) Palyopam, and (2) Sagaropam. What is this Palyopam ? Palyopam is ki explained as under (a metaphoric explanation)
Consider a large pit of one Yojan (eight miles) volume. It is packed with tips of hair grown in one to seven days. Once filled, it is emptied by taking out one hair-tip every hundred years. The total time taken in emptying the pit in this manner is called one Palyopam. Ten koda-kodi (ten million multiplied by ten million) Palyopams make one Sagaropam. (for detailed description of metaphoric time scale refer to Illustrated Anuyogadvar Sutra, Part II, p. 157) 9779-96 PAAP-PAD (SEGMENT OF DEMERIT OR SIN)
४०६. दुविहे कोहे पण्णत्ते, तं जहा-आयपइट्ठिए चेव, परपइट्ठिए चेव। ४०७. दुविहे माणे, दुविहा माया, दुविहे लोभे, दुविहे पेज्जे, दुविहे दोसे, दुबिहे कलहे, दुविहे अभक्खाणे, दुविहे म पेसुण्णे, दुविहे परपरिवाए, दुविहा अरतिरती, दुविहे मायामोसे, दुविहे मिच्छादसणसल्ले पण्णत्ते, के तं जहा-आयपइदिए चेव, परपइट्ठिए चेव। एवं णेरइयाणं जाघ वेमाणियाणं।
४०६. क्रोध दो प्रकार का है-आत्म-प्रतिष्ठित (स्वयं के ही कारण से उत्पन्न) और पर-प्रतिष्ठित। (बाह्य निमित्तों से उत्पन्न)। ४०७. इसी प्रकार मान, माया, लोभ, प्रेयस् (राग), द्वेष, कलह, ॐ अभ्याख्यान पैशुन्य, परपरिवाद, अरति-रति, माया-मृषा और मिथ्यादर्शनशल्य; नारकों से लेकर
वैमानिक पर्यन्त सभी दण्डकों के जीवों में दो-दो प्रकार के होते हैं।
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स्थानांगसूत्र (१)
(156)
Sthaananga Sutra (1)
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