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जोइसियाणं चेव, वेमाणियाणं चेव। २५३. दोण्हं गभवक्कंती पण्णत्ता, तं जहा-मणुस्साणं चेव, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं चेव।
२५०. देवों और नारक जीवों का 'उपपात' कहा जाता है। २५१. नारकों और भवनवासी देवों का मरकर ऊपर आना 'उद्धर्तन' कहा गया है। २५२. ज्योतिष्क देवों का और वैमानिक देवों का ॐ मरकर ऊपर से नीचे जाना 'च्यवन' कहलाता है। २५३. मनुष्यों और पंचेन्द्रियतिर्यग्योनिक जीवों का जन्म 'गर्भव्युत्क्रान्ति' कही गई है। (चित्र देखें)
250. Upapat (instantaneous birth) is of two kinds-of devs (gods or । 卐 divine beings) and of naarak jivas (infernal beings). 251. Udvartan
(incarnation in higher realms) is of two kinds of naaraks (infernal
beings) and Bhavanvasi devs (abode dwelling gods). 252. Chyavan (birth ॐ in lower realms) is of two kinds of Jyotishk devs (stellar gods) and of 9 Vaimanik devs (celestial vehicle dwelling gods). 253. Garbha-vyutkranti
(birth from womb) is of two kinds of manushyas (human beings) and of ! panchendirya-tiryak-yoni jivas (five sensed animals). गर्भस्थ-पद (गर्भ में रहे हुए मनुष्य एवं तिर्यंच की भिन्न-भिन्न गतिविधियों का कथन) GARBHASTH-PAD (SEGMENT OF EMBRYONIC STATE)
२५४. दोण्हं गडभत्थाणं आहारे पण्णत्ते, तं जहा-मणुस्साणं चेव, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं । # चेव। २५५. दोण्हं गब्भत्थाणं वुड्डी पण्णत्ता, तं जहा-मणुस्साणं चेव, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं
चेव। २५६. दोण्हं गत्भत्थाणं-णिवुड्डी, विगुब्बणा, गतिपरियाए, समुग्धाते, कालसंजोगे,, ॐ आयाती, मरणे पण्णत्ते, तं जहा-मणुस्साणं चेव, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं चेव। २५७. दोण्हं
छविपव्वा पण्णत्ता, तं जहा-मणुस्साणं चेव, पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं चेव। २५८. दो ॐ सुक्कसोणितसंभवा पण्णत्ता, तं जहा-मणुस्सा चेव, पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं चेव।
२५४. मनुष्यों और पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीवों का गर्भावस्था में आहार लेना कहा है-(इन दो के म सिवाय अन्य जीवों का गर्भ होता ही नहीं है)। २५५. मनुष्यों और पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीवों की गर्भ में
रहते हुए शरीरवृद्धि होती है। २५६. मनुष्यों तथा पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों की गर्भ में रहते हुए हानि, ॐ (निवृद्धि-वात, पित्त आदि दोषों से शरीर की होने वाली क्षति) विक्रिया, गतिपर्याय-(गर्भ से आत्म-प्रदेशों म का बाहर निकलना), समुद्घात, कालसंयोग-(काल कृत अवस्थाएँ), गर्भ से निर्गमन और गर्भ में मरण होता
है। २५७. मनुष्यों और पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों के छवि पर्व-त्वचा और सन्धियों (जोड़ों) के बंधन होते हैं। म २५८. मनुष्य और पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव शुक्र (वीर्य) और शोणित (रक्त-रज) से उत्पन्न होते हैं।
____254. In garbhavastha (embryonic state) two kinds of beings have ahar (food intake)--manushyas (human beings) and panchendiryatiryak-yoni jivas (five sensed animals) (besides these no other beings are
नानागाजाज卐55)
| स्थानांगसूत्र (१)
(112)
Sthaananga Sutra (1)
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