________________
95955555555555555555555555555555
१६२. नारकों के दो स्थानों (कारणों) से शरीर की उत्पत्ति होती है-राग से और द्वेष से। इसी प्रकार वैमानिक देवों तक भी सभी दण्डकों में जानना चाहिए। १६३. नारकों से लेकर वैमानिकों तक सभी दण्डकों के जीवों के शरीर की निष्पत्ति (पूर्णता) दो कारणों से होती है-राग से और द्वेष से। ___162. The bodies of nairayiks (infernal beings) are born due to two sthaans (causes)-raag (attachment) and dvesh (aversion). The same is true for beings of all dandaks (places of suffering) up to Vaimanik devas (gods dwelling in celestial vehicles). 163. The bodies of nairayiks (infernal beings) attain nishpatti (complete development) due to two sthaans (causes)-raag (attachment) and dvesh (aversion). The same is true for beings of all dandaks (places of suffering) up to Vaimanik devas (gods dwelling in celestial vehicles). काय-पद KAYA-PAD (SEGMENT OF BODIED BEINGS)
१६४. दो काया पण्णत्ता, तं जहा-तसकाए चेव, थावरकाए चेव। १६५. तसकाए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा-भवसिद्धिए चेव, अभवसिद्धिए चेव। १६६. थावरकाए दुविहे पण्णत्ते, तं जहाभवसिद्धिए चेव, अभवसिद्धिए चेव।
१६४. काय दो प्रकार के हैं-त्रसकाय और स्थावरकाय। १६५. त्रसकाय दो प्रकार के हैंभवसिद्धिक (भव्य) और अभवसिद्धिक (अभव्य)। १६६. स्थावरकायिक दो प्रकार के हैं-भवसिद्धिक
और अभवसिद्धिक। ____164. Kaya (bodied beings) are of two kinds-tras-kaya (mobile beings) and sthavar-kaya (immobile beings). 165. Tras-kaya (mobile beings) are of two kinds-bhavasiddhik (worthy of being liberated) and abhavasiddhik (unworthy of being liberated). 166. Sthavar-kaya (immobile beings) are of two kinds-bhavasiddhik (worthy of being liberated) and abhavasiddhik (unworthy of being liberated). दिशा-पद (शुभ दिशा) DISHA-PAD (SEGMENT OF DIRECTION)
१६७. दो दिसाओ अभिगिज्झ कप्पति णिगंथाण वा णिगंथीण वा पव्वावित्तए-पाईणं चैव उदीणं चेव। १६८. दो दिसाओ अभिगिन्झ कप्पति णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा-मुंडावित्तए, सिक्खावित्तए, उवट्ठावित्तए संभुंजित्तए, संवासित्तए, सज्झायमुद्दिसित्तए, सज्झायं समुद्दिसित्तए, सज्झायमणुजाणित्तए, आलोइत्तए पडिक्कमित्तए, णिदित्तए, गरहित्तए, विउट्टित्तए, विसोहित्तए, अकरणयाए अन्भुद्वित्तए अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिब्बज्जित्तर-पाईणं चेवं, उदीणं चेव। १६९. दो दिसाओ अभिगिज्झ कप्पति णिग्गंथाणं वा णिग्गंथीणं वा अपच्छिम
मितीय स्थान
(81)
Second Sthaan
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org